ओड़िशा से अक्षय महाराणा की रिपोर्ट: गंजाम की शांत पहाड़ियाँ अब बढ़ते संघर्ष का केंद्र बन गई है क्योंकि यहां प्रकृति के शोषण के साथ-साथ मानव के भी शोषण का आरोप लग रहा है। बड़े पैमाने पर पत्थर खनन और धरोहर संरचनाओं को नुकसान पहुँचाने के आरोपों ने स्थानीय निवासियों के नेतृत्व में एक ज़मीनी आंदोलन को जन्म दिया है। वहां की स्थानीय निवासी आरती देवी का कहना है की, “यह केवल पत्थर का मामला नहीं है। यह हमारी ज़मीन, हमारे पानी, हमारे वन्यजीवों, हमारी आस्था और हमारे किसानों के अस्तित्व का भी मामला है।”
सरकारी अधिकारियों का मौन डाल रही खलल
आरती देवी का आरोप है कि खनन माफिया ओड़िशा के गंजाम जिले के पोलसरा के धुंकापड़ा पंचायत क्षेत्र की पहाड़ियों में अवैध रूप से विस्फोट कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकारी अधिकारियों के मौन समर्थन के कारण वे इसे रोक नहीं पा रहे हैं।करोड़ों रुपये के पत्थर निकाले जा चुके हैं, लेकिन स्थानीय पर्यावरण, पशु और कृषि व्यवस्था खतरे में है। इसलिए, काले हिरण और मोर जैसे दुर्लभ जानवरों की प्रजातियों का लगातार विनाश हो रहा है
ज़िला प्रशासन ने वास्तविक स्थिति को छिपाया
सप्तेश्वर मंदिर के पास खनन के कारण प्राचीन पूजा स्थलों की सुरक्षा सवालों के घेरे में है।कृषि कार्य के लिए आवश्यक जलाशयों और सिंचाई प्रणालियों में पत्थर भर गए हैं, जिससे खेतों तक पानी नहीं पहुँच पा रहा है।परिणामस्वरूप, इस वर्ष कृषि कार्य संभव नहीं हो पाया है। आरोप है कि ज़िला प्रशासन ने वास्तविक स्थिति को छिपाया है।
Landslide in Dhanbad: धनबाद के जोगता में फिर भू-धंसान, दर्जनों घरों में दरार, दहशत में लोग
वन्यजीवों की रक्षा के लिए वन्यजीवों की रक्षा के लिए आंदोलन
उनकी सात माँगों में खनन माफिया पर रोक लगाना, प्राकृतिक और सांस्कृतिक संसाधनों की रक्षा करना, किसानों के लिए सिंचाई बहाल करना, दुर्लभ पशु-पक्षियों की सुरक्षा और ज़िम्मेदार अधिकारियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की माँग शामिल है।यह विरोध सिर्फ़ खनन के ख़िलाफ़ नहीं है, बल्कि गंजाम के पर्यावरण, संस्कृति, कृषि और वन्यजीवों की रक्षा के लिए एक जन आंदोलन का रूप ले चुका है।देखना यह है कि सरकार क्या कार्रवाई करती है।