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हुनर देख तोड़ दिया गया था खेल का सामान, कौन है वो खिलाड़ी जिसके नाम पर मनाया जाता है राष्ट्रीय खेल दिवस

National sports day: आपको बता दें कि राष्ट्रीय खेल दिवस भारतीय हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के नाम पर मनाया जाता है। दरअसल, मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर यानी 'हॉकी का जादूगर' कहा जाता है।

By: Divyanshi Singh | Last Updated: August 29, 2025 11:02:34 AM IST



National sports day:  29 अगस्त खेल प्रेमियों के लिए एक खास दिन हैं। हर दिन को हर साल खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आखिर इसी दिन को खेल दिवस के रूप में क्यों चुना गया। आपको बता दें कि इस दिन एक ऐसे महान खिलाड़ी की जयंती मनाई जाती है जिसने हॉकी के मैदान पर भारत का परचम लहराया था। तो आइए जानते हैं कि यह खास दिन किसके नाम पर है और इसे कब से मनाया जाने लगा।

कौन है वो खिलाड़ी ? 

आपको बता दें कि राष्ट्रीय खेल दिवस भारतीय हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के नाम पर मनाया जाता है। दरअसल, मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर यानी ‘हॉकी का जादूगर’ कहा जाता है। 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में जन्मे ध्यानचंद ने हॉकी को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया।

हॉकी के जादूगर 

ध्यानचंद के हॉकी खेलने में इतने माहिर थे कि गेंद उनकी स्टिक से इस तरह चिपक जाती थी कि गोल लगभग तय हो जाता था। इतना ही नहीं, एक बार उनके कौशल पर संदेह के चलते उनकी हॉकी स्टिक तक तोड़ दी गई थी ताकि यह जांचा जा सके कि उसमें कोई चुंबक है या नहीं, लेकिन सच तो यह था कि असली जादू तो उनकी प्रतिभा में था जिसे कोई छीन नहीं सकता था।

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कब से मनाया जाता है खेल दिवस

मेजर ध्यानचंद के योगदान को देखते हुए उनकी स्मृति में भारत सरकार ने 2012 में 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया। आज़ादी के 7 दशक बाद भी हॉकी जगत में उनका नाम गूंजता है। वे अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कड़ी मेहनत और लगन ने देश को गौरवान्वित किया, इसलिए उनकी जयंती एक विशेष दिन के रूप में मनाई जाती है।

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कारनामे जान रह जाएंगे दंग

ध्यानचंद के करियर की बात करे तो 1926 से 1948 तक उन्होने गोल लगभग 1000 गोल किए। उनके इस गोल में 400 से ज़्यादा अंतर्राष्ट्रीय गोल शामिल हैं।1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक से लेकर 1932 के लॉस एंजिल्स और 1936 के बर्लिन ओलंपिक तक, उन्होंने भारत के लिए लगातार 3 बार स्वर्ण पदक जीते। 1928 में पदार्पण करते ही उन्होंने 14 गोल दागे। आज़ादी से पहले, यह उपलब्धि किसी चमत्कार से कम नहीं थी। इसके लिए उन्हें देश का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण भी मिला। वे रात में ड्यूटी से लौटने के बाद भी अभ्यास करते थे।

एक बार एक विदेशी टूर्नामेंट में, ध्यानचंद की स्टिक पर गेंद का नियंत्रण देखकर विरोधी टीम ने संदेह व्यक्त किया। उनकी स्टिक तोड़ने पर उन्हें कुछ नहीं मिला क्योंकि असली ताकत उनके कौशल में थी। यह कहानी आज भी हॉकी प्रेमियों के लिए प्रेरणास्रोत है।

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