आलोक हरदेनिया की रिपोर्ट
Cancer: जबलपुर से नागपुर के बीच एक ट्रैन चलती है।जिसका नाम है एम्बुलेंस ठीक उसी तर्ज पर जैसे पंजाब से एक ट्रैन चलकर राजस्थान जाती है उसे कैंसर ट्रैन के नाम से जाना जाता है।यह नाम रेलवे ने नहीं रखे है और न ही इस प्रकार के रिकॉर्ड की कोई ट्रैन सरकारी रिकॉर्ड में है बल्कि इन ट्रेनों में यात्रा करने वाले यात्रियों ने उपयोग और अनुभव के आघार पर रखे है।क्योकि इन ट्रेनों में यात्रा करने वाले अधिकाँश यात्री मरीज होते है जो कि तरह – तरह की बीमारी का इलाज कराने के लिए इन ट्रैनों से यात्रा करते है।बड़ा सवाल आखिर इतनी तेजी से ये बीमारियों ने अपने पैर कैसे फैलाए ।
तेज फैलती तरह तरह की बीमारियों ने आखिर अपने पैर कैसे फैलाये ये जानने के लिए हम पहुँचे सीनियर मेडिकल डॉ, ए. के.अग्रवाल के पास जिन्होंने ने हमें बताया कि एक दम से जो ये नई नई बीमारियां सामने आ रही है इसका सीधा संबंध आपके खाने से जो खाना आप खा रहे है।उसमें किसान द्वारा बेजा मात्रा में रासायनिक खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाता है।जिससे कई प्रकार की बीमारियां सामने आ रही है। और इससे अगर बचना है तो किसान को जैविक खेती की ओर जाना ही पड़ेगा जब इस बारे में हमने डॉ. ए. के.अग्रवाल से पूछा कि फिलहाल जो तरह तरह की बीमारियों ने पैर पसारे है इसका क्या कारण है तो उनका कहना था कि इसका सीधा संबंध हमारे खाने पीने से किसान अपने खेतों में बहुत अधिक मात्रा में कीटनाशक दवाओं और खाद का इस्तेमाल फसलों पर कर रहा है । और फिर वही खेत की फसल हमारी थाली तक पहुँच रही है।
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डा. ए.के.अग्रवाल (मेडीकल डॉक्टर) से बातचीत के अंश
किसान बहुताधिक मात्रा में आखिर क्यों करते है रासायनों का इस्तेमाल
हम ये जानने के लिए खेतो की तरफ हमारी टीम ने रुख किया क्या वाकई में किसान बहुत अधिक मात्रा में रासायनों का इस्तेमाल करते है।तो हमने वहाँ पर ये पाया कि पहले तो किसान 15 लीटर का टैंक पीठ पर लटकाकर दवाई डालते थे अब लेकिन इल्ली और फंगल की इम्यूनटी बढ़ जाने के कारण 1000 ली, टैंक को प्रेशर पंप ट्रेक्टर से जोड़ कर ओर अधिक मात्रा में दवाई का स्प्रे करते है।हम ने किसानों से पूछा कि आप इतनी ज्यादा मात्रा में रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाइयों को उपयोग क्यों करते है तो उन्होंने हमें बताया कि अधिक पैदावार और फसल को इल्ली से बचाने के लिए महँगी महँगी रासायन दवाओं का उपयोग करना पड़ता है।किसान से जब हमने बात की तो उनका कहना था कि तो उन्होंने कहाँ की फसल को बचाने के लिए और कर भी क्या सकते है।बाजार में जो बीज मिलता है उसमें ज्यादा इल्ली का प्रकोप होता है।
डॉ अर्चना शर्मा से बातचीत के अंश
डॉ. श्रीमती अर्चना शर्मा (P.H.D.Zoology) से जब हमने बात की उन्होंने हमें बताया कि किसान जो कीटनाशक दवाओं का घोल तैयार करके फसलों पर छिड़काव करता है उसका सिर्फ एक प्रतिशत ही फसल पर जाता है , बाकी का वायुमण्डल में , जमीन की मिट्टी के द्वारा हमारे अंडर ग्राउंड वाटर (भुमिगत) जल में जाकर मिल जाता है जिससे हमारे भुमिगत जल और वायुमंडल दोनों प्रदूषित हो रहे है। जिसका सीधा असर मानव शरीर पर तरह तरह की बीमारियों के रूप में सामने आ रहा है। पहले नदियों गोल्डन फिश और पातल बड़ी आसानी से देखने मिल जाती थी, जो कि पानी के शुध्दिकरण का काम करती थी। लेकिन अब ये विलुप्त प्रजाति हो गई है। मानव शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता घटने का मुख्य कारण भी किसान द्वारा अत्याधिक मात्रा में रसायन का उपयोग है
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मध्यप्रदेश को खेती में विपुल पैदावार करने के मामले में लगातार 5 बार से ज्यादा कृषि कर्मण अवार्ड मिला जो पिछले वर्षों में पंजाब राज्य को मिला करता था। पंजाब के किसानों ने रासायनिक खाद और कीटनाशक का बेजा उपयोग करके ही उत्पादन बढ़ाया था ।उत्पादन तो पंजाब ने अपना बढ़ा लिया था पर रासायनिक खाद और कीटनाशक के बेजा इस्तेमाल का दुष्परिणाम भी सामने आया और पंजाब राज्य में कैंसर और भी अन्य घातक बीमारी बहुत ही तेजी से फैली और आज भी वहाँ से एक ट्रेन चलती है जो राजस्थान जाती है इस ट्रैन में अधिकाँश यात्रा करने वाले यात्री कैंसर के मरीज होते या उनके रिश्तेदार होते है।और वैसी ही ट्रैन जबलपुर से नागपुर के बीच चलती इसमें यात्रा करने वाले भी अधिकाँश यात्री मरीज होते है जो अपना इलाज कराने के लिए नागपुर जाते है और इसीलिए इसका नाम यात्रियों ने एम्बुलेंस रख दिया है।
किसान विजय दुबे से बात चित के अंश
बेजा मात्रा में रासायनिक खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल करना क्या सही है ? जब हमने कृषि अधिकारी से सवाल पूछा कि क्या इतनी अधिक मात्रा में डालना ठीक है तो उन्होंने हमें बताया कि किसान को रासायनिक खाद और कीटनाशक को संतुलित मात्रा में डालना चाहिए क्योकि इन रासायनों का अधिक उपयोग करने से जमीन की उर्वकता कम होती है।और कीटनाशक के अधिक उपयोग से खाद्य पदार्थ वातावरण और पानी भी प्रदूषित होता है ।फसलो के मित्र कीट भी कीटनाशक दवाइयों से नष्ट हो जाते है।
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मंत्री राकेश सिंह से बातचीत के अंश
बीते दिनों पहले प्राकृतिक खेती के विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में मंत्री राकेश सिंह आचार्य देवव्रत की प्राकृतिक खेती पर लिखी पुस्तक का उल्लेख करते हुए कहा कि पेज नंबर 37 पर उन्होंने बताया कि जंगल मे पेड़ो यूरिया कौन देता , पानी कौन डालता है,उसमे कीटनाशक का छिड़काव कौन करता है ,और जब समय आता है , तो पेड़ फलों से लद जाते है। उसके किसी भी पत्ते को तोड़कर लेब में टेस्ट करा लीजिये किसी भी तत्व की कमी नही मिलेगी यही है प्राकृतिक खेती का सिद्धान्त जो जंगल मे काम करता है वही हमारे खेत मे खेत मे काम करना चाहिए।
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हम आपको फ़्लैश बैक में लेकर चलते है,
जब देश में हरित क्रांति की शुरुआत हुई उसके पहले ही देश में विदेशी कंपनियों ने कीटनाशक दवा बनाने की फैक्ट्री खोली यूनियन कार्बाइड एक अमेरिका की पेस्टिसाइड दवाई बनाने वाली कंपनी थी जिसने भोपाल में अपनी फैक्ट्री चालू की जिसमे गैस हादसे में कई लोग मारे गए और हजारों लोग आज भी उस गैस त्रासदी का इलाज करवा रहे है।अगर भोपाल में गैस त्रासदी की घटना नहीं हुई होती तो आज भी लोगों को ये पता नहीं चल सकता था कि ये यूनियन कार्बाइड क्या है।हरित क्रांति जब आई तो किसानों को संकर( हाइब्रिड) बीज ये कहकर बोवनी करने के लिए प्रेरित किया गया कि इससे खेती में विपुल (बंपर) पैदावार होगी जिससे उनकी आय बढ़ेगी किसान ने जब यह बीज अपने खेतों में डाला तो पहले तो फसल पर इल्ली और बैक्टीरिया का प्रकोप हुआ । फसल को बचाने के लिए किसानों को उसी कंपनी के पास जाकर महंगे दामों पर रासायनिक कीटनाशक दवाओं का उपयोग कर फसल को बचाना पड़ा । किसान का जितना उत्पादन बढ़ा उससे ज्यादा उसे दवाओं पर खर्च करना पड़ा।और किसान इस मकड़जाल में फंसता ही चला गया और आज भी वह इससे बाहर नही निकल पाया है।दवा कंपनी लगातार अपनी तिजोरीया भर्ती जा रही है।और कर्ज के तले दबा किसान आज भी परेशान है।किसानों को अगर इस मकड़जाल से बाहर निकलना है और बीमारियों में कमी लाना है । तो सिक्किम राज्य की तरह जैविक खेती की ओर जाना पड़ेगा तभी इन सभी चीजों से निपटा जा सकता है।