पुरी, ओड़िशा से अक्षय महाराणा की रिपोर्ट
Om Bidla in Puri: ओडिशा की पहचान अब न केवल राज्य की सीमाओं तक सीमित रहेगी, बल्कि संसद भवन के प्रांगण में भी स्थायी रूप से अंकित हो जाएगी। जगन्नाथ धाम पुरी की ऐतिहासिक और विश्वप्रसिद्ध रथ यात्रा में उपयोग होने वाले तीनों रथों – भगवान जगन्नाथ के नंदीघोष, भगवान बलभद्र के तालध्वज और देवी सुभद्रा के दर्पदलन – से एक-एक पवित्र पहिया दिल्ली स्थित संसद भवन में लगाया जाएगा।
ओडिशा की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला अपने पुरी दौरे पर पहुंचे थे। इसी दौरान श्रीमंदिर प्रबंधन समिति ने उनसे अनुरोध किया कि संसद भवन में रथ यात्रा के पवित्र प्रतीकों को स्थान दिया जाए। समिति का मानना था कि इससे ओडिशा की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी। यह प्रस्ताव ओम बिरला ने तुरंत स्वीकार किया।
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तीनों रथों के एक-एक पहिए संसद भवन परिसर में होंगे स्थापित
श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रशासन के मुख्य प्रशासक अरविंद पाढ़ी ने अपने सोशल मीडिया X पर पोस्ट करते हुए बताया कि, “लोकसभा अध्यक्ष ने महाप्रभु के दर्शन किए और आशीर्वाद लिया। उन्होंने हमारी प्रस्ताव का स्वागत करते हुए सहमति जताई है कि तीनों रथों के एक-एक पहिए संसद भवन परिसर में स्थापित किए जाएंगे।”
इस अवसर पर ओम बिरला के साथ केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और पुरी के सांसद संबित पात्रा भी शामिल रहे। मंदिर प्रशासन ने सिंहद्वार पर इन सभी का पारंपरिक ढंग से स्वागत किया।
आस्था, संस्कृति और परंपरा का जीवंत प्रतीक है भगवान् जग्गनाथ की रथ यात्रा
पुरी की रथ यात्रा केवल धार्मिक उत्सव ही नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और परंपरा का जीवंत प्रतीक है। हर साल करोड़ों भक्त देश-विदेश से पुरी पहुंचते हैं और भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा के विशाल रथों को खींचकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। अब उन्हीं रथों के पहिए संसद भवन में स्थायी तौर पर दिखाई देंगे, जो न केवल ओडिशा बल्कि पूरे भारत के लिए गौरव का विषय है।
सिर्फ राजनैतिक विचारों का ही केंद्र नहीं भारत, राष्ट्र करता है परम्पराओं और आध्यात्मिक मूल्यों का सम्मान
संसद भवन में इन पवित्र पहियों की स्थापना से यह संदेश जाएगा कि भारत की शक्ति उसकी विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि में निहित है। यह कदम आने वाली पीढ़ियों को याद दिलाएगा कि भारतीय लोकतंत्र केवल राजनीतिक विचारों का केंद्र नहीं है, बल्कि यहां देश की परंपराओं और आध्यात्मिक मूल्यों का भी सम्मान किया जाता है।
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यह निर्णय ओडिशा की जनता के लिए गर्व का क्षण है और पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत। जगन्नाथ संस्कृति अब संसद में स्थापित होकर भारत की एकता और परंपरा का अमर प्रतीक बन जाएगी।