अक्षय महाराणा की रिपोर्ट, Odisha Flood News: बाढ़ सिर्फ पानी नहीं लाती, वह कई बार पूरी ज़िंदगी की नींव हिला देती है। जाजपुर ज़िले की रहने वाली जुगनी बीबी इसी दर्द से गुजर रही हैं। एक पल में उनका सब कुछ छिन गया उसकी घर, सामान और सुरक्षित भविष्य की आस भी इस पानी के बहाव में बह गई। कानी नदी के तटबंध टूटने से आई बाढ़ ने जुगनी बीबी का दो दशक पुराना घर बहा दिया।
सब समान बह गया
मिट्टी की दीवारें, रोज़मर्रा का सामान, मेहनत से जुटाए गहने, मोटरसाइकिल और गृहस्थी के सामान सब लहरों में समा गया। अब न छत बची है और न ही वह सुरक्षित कोना, जिसके सहारे यह मां-बेटा जीते थे। सबसे कठिन घड़ी तब है जब जुगनी बीबी अपने बेटे मीरबानू की ओर देखती हैं। मीरबानू मूक-बधिर है, बोल नहीं सकता। उसकी खामोश आंखें मां से बस यही सवाल करने लगती हैं “हमारा घर कहां गया?” यह सवाल किसी भी शब्द से कहीं गहरा है।
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आस है कि सरकार या प्रशासन रहने के लिए जगह दे
जुगनी बीबी कहती हैं –“मैंने सालों मेहनत कर यह घर बनाया था। बेटे के लिए सुरक्षित छत तैयार की थी। लेकिन बाढ़ ने सब छीन लिया। अब बस एक आस है कि सरकार या प्रशासन हमें रहने के लिए जगह दे, ताकि मैं अपने बेटे के साथ फिर से जीवन शुरू कर सकूं।” गांव में राहत सामग्री और अस्थायी शिविरों की व्यवस्था की गई है, लेकिन जिनका सब कुछ बह गया है, उनके लिए यह सहारा अस्थायी है।
क्या प्रशासन उन्हें स्थायी समाधान देगी?
जुगनी जैसी महिलाएं चाहती हैं कि प्रशासन उन्हें स्थायी समाधान दे, ताकि वे फिर से अपने जीवन को पटरी पर ला सकें। बाढ़ का पानी धीरे-धीरे उतर जाएगा, खेत और रास्ते फिर से सूख जाएंगे। लेकिन जो घाव यह आपदा दे गई है, घर उजड़ने और बेटे की खामोश तकलीफ़ देखने का वह आसानी से नहीं भर पाएंगे। क्या कभी मीरबानू की आंखों में खोई हुई उम्मीद की चमक लौटेगी? इस सवाल का जवाब अभी अनिश्चित है, लेकिन इंसानियत और व्यवस्था दोनों से यही अपेक्षा है कि वह इस मां-बेटे की दुनिया को फिर से संवारें।
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