Tawaif Story: तवायफ वो नाम है जिसका नाम सुनते है लोगों के दिमाग में सिर्फ गलत ही सोच बनती है। लेकिन हाल ही में रिलीज हुई संजय लीला भंसाली की सीरीज़ ‘हीरामंडी’ (Heeramandi) ने लोगों की इस सोच को बदल कर रख दिया। इस फ़िल्म में पाकिस्तान के लाहौर ज़िले के हीरामंडी इलाके की कहानी दिखाई गई है, जिसके बाद से तवायफ़ों को लेकर चर्चा तेज हो गई है। मुगल काल कला और संस्कृति से समृद्ध काल था। शाम के समय कविताएँ, शास्त्रीय संगीत सुनने और नृत्य प्रदर्शन देखने में मुग़लों के घंटों बीतते थे। ऐसे तवायफखानों और उनकी ख़यातों का इतिहास काफी ऐतिहासिक और पुराना है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उस जमाने में लड़कियों को तवायफ बनने के लिए किन-किन रस्मों को निभाना पड़ता है। आज हम आपको इस खबर में यही बताने वाले हैं।
कुछ इस तरह तवायफ बनती थीं लड़कियां
तवायफ बनने के लिए एक छोटी उम्र की आम सी लड़की को कई रस्मों से गुज़रना पड़ता है। इनमें 3 रस्में ख़ास हैं (अंगिया, मिस्सी, और नथ उतरवाई) ये वो रस्में हैं जिन्हे अपनाने के बाद ही तवायफ का दर्जा मिला करता था। तो आइए जान लेते हैं इन रस्मों को कैसे फॉलो किया जाता था।
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अंगिया रस्म क्या है?
तवायफ बनने के लिए सबसे पहले अंगिया रस्म निभाई जाती है। अंगिया का मतलब ब्रा होता है। जब लड़की इस दिशा में आगे बढ़ती थी, तो तवायफखाने की तवायफें मिलकर लड़की को अंगिया पहनाने की रस्म निभाती थीं।
मिस्सी प्रथा क्या है?
मिस्सी एक ऐसी रस्म थी जिसमें दाँत और मसूड़े काले किए जाते थे। दरअसल, नवाबों के ज़माने में होठों पर कत्थे की लाली और काले दाँतों को शुभ माना जाता था। दाँतों को काला करने के लिए लोहे और कॉपर सल्फेट से बने पाउडर को रगड़ा जाता था। इस रस्म में कोई बाहरी व्यक्ति शामिल नहीं होता था। तवायफखाने की आपा यह रस्म निभाती थीं।
नथ उताराई क्या है?
अब वो समय आता है जब लड़की अपना कौमार्य बेचने को तैयार होती है। नथ उताराई में लड़की की बोली लगाई जाती थी। यह रस्म तवायफखाने में एक उत्सव की तरह मनाया जाता था।