Assam teacher travels 150 km daily: असम (Assam) के सोनितपुर जिले के रंगपारा में रहने वाले शिक्षक देबजीत घोष (Debajit Ghosh) को राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया जा रहा है। उन्होंने केवल 34 साल की उम्र में यह पुरूष्कार हासिल कर लिया है। वह डिब्रूगढ़ के नामसांग चाय बागान मॉडल स्कूल के प्रधानाचार्य हैं। वह रोजाना स्कूल जाने के लिए देहिंग पटकाई राष्ट्रीय उद्यान (Dehing Patkai National Park) के पास से गुजरकर करीब 150 किलोमीटर तक रोजाना यात्रा करते हैं। देबजीत घोष ने 267 स्कूल छोड़ने वाले बच्चों को वापस स्कूल लेकर आएं, ताकी यहां की शिक्षा प्रणाली में सुधार लाया जा सके। वह चाहते हैं कि सभी 10वीं कक्षा पास करने वाले छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त हो सकें।
असम के लिए आशा की किरण हैं देबजीत घोष
शिक्षक देबजीत घोष चाय बागान समुदाय के लिए आशा की किरण बन गए हैं। जैसे ही असम में सूरज उगता है, देबजीत घोष रोजाना अपनी 150 किलोमीटर की यात्रा तय करने के लिए निकल पड़ते हैं। उन्हें रोजाना दिहिंग पटकाई राष्ट्रीय उद्यान से होकर गुजरना पड़ता था। यह रास्ता काफी खतरनाक है, यहां बारिश के बाद सड़के कीचड़ में तब्दील हो जाती हैं और साथ ही कभी भी हाथियों के आने का खतरा बना रहता है। लेकिन देबजीत घोष का हौंसला कभी टस से मस नहीं होता है। वह उन बच्चों को पढ़ाने के लिए यह कठिन सफर तय करते हैं।
शिक्षा प्रणाली में शिक्षक ने किया सुधार
जब उनसे पूछा गया कि थका देने वाली यात्रा के बावजूद वे डिब्रूगढ़ में ही क्यों रहते हैं, तो घोष ने कहा, “अगर मैं यहां नहीं रहूंगा, तो नामसांग टी एस्टेट मॉडल स्कूल (Namsang TE Model School) में विकास कार्य कर पाना संभव नहीं होगा। मुझे नियमित रूप से कार्यालय में दस्तावेज भेजने होते हैं, और मेरी पत्नी भी डिब्रूगढ़ में काम करती है। इसके अलावा, मैं अपनी कार में दो अन्य शिक्षकों को साथ लाता हूं, जबकि बाकी सभी साइकिल से आते हैं, क्योंकि स्कूल तक कोई सीधा सार्वजनिक परिवहन नहीं है।”
राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2025 से सम्मानित किए जाएंगे देबजीत घोष
इसी कारण उन्हें 5 सितंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Droupadi Murmu) द्वारा राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2025 (National Award for Teachers 2025) से सम्मानित किया जाएगा। उनकी कहानी इस विश्वास का प्रतीक है कि एक शिक्षक पूरे समुदाय को बदल सकता है। बता दें कि देबजीत घोष के करियर की शुरूआत, साल 2013 से हुई। उन्होंने साल 2013 में डिब्रूगढ़ बंगाली हाई स्कूल में स्नातक शिक्षक के रूप में जॉइन किया था। एक बार आठवीं कक्षा के सबसे बुद्धीमान छात्र अभिषेक के विज्ञान में खराब अंक आए। जब उन्होंने इसकी वजह का पता किया तो पाया कि छात्र को लिखना पसंद नहीं है। फिर उन्होंने छात्र को समझाया और उसमें सुधार करवाया। इसके बाद उस छात्र ने मैट्रिक परीक्षा में विज्ञान में 100 और कुल मिलाकर 93 प्रतिशत अंक हासिल किए।
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150 किलोमीटर का रोजाना सफर तय करते हैं देबजीत घोष
स्कूल की स्थापना से पहले की स्थिति के बारे में बताते हुए देबजीत घोष ने कहा, पहले, चाय बागान के बच्चों को स्कूल छोड़ना पड़ता था क्योंकि 15 किलोमीटर के दायरे में कोई हाई स्कूल नहीं था। सबसे नजदीकी हाई स्कूल तक पहुंचने के लिए देहिंग पटकाई राष्ट्रीय उद्यान पार करना पड़ता था, जो बेहद जोखिम भरा था।” धीरे-धीरे उन्होंने इसी शिक्षा प्रणाली में सुधार किया।
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