बिहार की राजनीति में शिक्षा का सवाल हमेशा चर्चा का विषय रहा है, लेकिन हाल ही में यह मुद्दा और भी उभरकर सामने आया है. महागठबंधन के CM उम्मीदवार तेजस्वी यादव सिर्फ 9वीं पास, उनके डिप्टी CM उम्मीदवार मुकेश सहनी 8वीं तक पढ़े, और बीजेपी के दूसरे उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी की डिग्री पर भी सवाल उठ रहे हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या बिहार की अगली सरकार शिक्षा सुधार के मामले में कितनी गंभीर होगी? क्या ऐसे नेताओं के नेतृत्व में राज्य की शिक्षा व्यवस्था में बदलाव संभव है, या यह सिर्फ राजनीतिक बहस तक सीमित रहेगा? आइए जानते हैं बिहार के इन प्रमुख नेताओं की शैक्षिक पृष्ठभूमि और इसके संभावित प्रभावों का विश्लेषण.
तेजस्वी यादव की शिक्षा
सबसे पहले जानते हैं महागठबंधन के CM फेस तेजस्वी यादव की शैक्षणिक योग्यता के बारे, लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव केवल नौवीं कक्षा पास हैं. उनकी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के प्रतिष्ठित स्कूलों में हुई. हालाँकि, पढ़ाई पूरी करने से पहले ही उनकी रुचि क्रिकेट और फिर राजनीति में हो गई. नौवीं कक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने औपचारिक शिक्षा छोड़ दी.
मुकेश सहनी की शिक्षा
महागठबंधन के उपमुख्यमंत्री फेस मुकेश सहनी भी ज्यादा पढ़े लिखें नहीं हैं. मुकेश सहनी का परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था, जिसके कारण उन्हें 19 साल की उम्र में अपना गृहनगर सुपौल छोड़कर मुंबई जाना पड़ा. मुकेश ने केवल आठवीं कक्षा तक ही पढ़ाई की, लेकिन मुंबई आने के बाद उन्होंने सेल्समैन के रूप में शुरुआत की और अंततः सेट डिज़ाइनर के रूप में टेलीविजन और फिल्म उद्योग में प्रवेश किया। उनकी कंपनी, मुकेश सिने वर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड, शाहरुख खान अभिनीत देवदास (2002) और सलमान खान अभिनीत बजरंगी भाईजान (2015) जैसी फिल्मों पर काम कर चुकी है.
NDA के उपमुख्यमंत्री की शिक्षा पर डाउट
NDA के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी की शिक्षा का मुद्दा हमेशा उठता रहा है कि उनकी डिग्री फर्जी है. उन्होंने दावा किया कि उन्होंने कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय से डी.लिट. की डिग्री प्राप्त की है, जबकि बिहार विद्यालय परीक्षा बोर्ड ने अदालत को बताया कि उन्होंने मैट्रिक पास नहीं किया है.
क्या इन नेताओं की शिक्षा व्यवस्था
सवाल यह है कि क्या ऐसे नेताओं के नेतृत्व में बिहार की शिक्षा व्यवस्था में सुधार संभव है? विशेषज्ञों का मानना है कि व्यक्तिगत अनुभव और राजनीति में कुशल नेतृत्व जरूरी हैं, लेकिन व्यापक शिक्षा सुधार और गुणवत्तापूर्ण पाठ्यक्रम, शिक्षकों की ट्रेनिंग और स्कूल इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे ठोस कदमों के लिए पूरी नीति और प्रशासनिक समझ आवश्यक है. सिर्फ नेताओं की लोकप्रियता या राजनीतिक दांव-बाज़ी से शिक्षा की वास्तविक स्थिति नहीं बदलेगी. इसलिए, यदि बिहार में शिक्षा प्रणाली में सुधार होना है, तो यह नेताओं की व्यक्तिगत योग्यता से अधिक उनके विज़न, नीतियों और सरकारी प्राथमिकताओं पर निर्भर करेगा.
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