Imran Masood Statement : अपने विवादित बयानों के चलते चर्चा में रहने वाले कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने एक बार फिर से सुर्खियां बटोरी हैं. इमरान मसूद ने हाल ही में स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह की तुलना फ़िलिस्तीनी आतंकवादी संगठन हमास से करके राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया. मसूद ने एक पॉडकास्ट में कहा कि भगत सिंह और हमास दोनों अपनी ज़मीन के लिए लड़ रहे थे.
उन्होंने कहा, “भगत सिंह ने अपनी ज़मीन के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया. इज़राइल एक कब्ज़ाकारी है.” हमास द्वारा बंधक बनाए गए 250 लोगों का ज़िक्र करते हुए, मसूद ने कहा कि लोग इज़राइल द्वारा मारे गए लगभग 1,00,000 फ़िलिस्तीनियों को नहीं देखते.
इमरान मसूद के बयान पर छिड़ा विवाद
मसूद के इस बयान ने तुरंत विवाद खड़ा कर दिया. भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहज़ाद पूनावाला ने ट्विटर पर कहा कि इमरान मसूद की तुलना सभी स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान है. उन्होंने आरोप लगाया कि वामपंथी और कांग्रेस पार्टी के सदस्य गांधी परिवार का महिमामंडन करने और देश के नायकों का अपमान करने के लिए आतंकवादी समूहों की प्रशंसा करते हैं.
पूनावाला ने यह भी याद दिलाया कि कन्हैया कुमार ने पहले भगत सिंह की तुलना लालू प्रसाद यादव से की थी, और कांग्रेस पार्टी ने पहले चंद्रशेखर आज़ाद, सावरकर, पटेल और बिरसा मुंडा जैसे कई स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान किया था.
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कांग्रेस सांसद ने क्यों दिया ये बयान?
इस बयान का संदर्भ 7 अक्टूबर, 2023 को हुए हमास हमले से जुड़ा है. उस दिन, हमास ने इज़राइल पर एक अभूतपूर्व हमला किया, जिससे यह इज़राइल के इतिहास का सबसे घातक दिन बन गया. हमास के आतंकवादियों ने इज़राइली सीमाओं का उल्लंघन किया, जिसमें 1,200 से ज़्यादा लोग मारे गए और 250 बंधक बना लिए गए. जवाब में, इज़राइल ने गाजा में एक विशाल सैन्य अभियान शुरू किया, जिसमें 67,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी मारे गए और एक व्यापक मानवीय संकट पैदा हो गया.
इस संघर्ष ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को भी गहराई से प्रभावित किया, हज़ारों फ़िलिस्तीनी विस्थापित हुए, और वैश्विक एजेंसियों ने अकाल और मानवीय संकट की चेतावनी दी.
छिड़ गई राजनीतिक बहस
इमरान मसूद के बयान और उसके बाद की प्रतिक्रियाओं ने एक गरमागरम राजनीतिक बहस छेड़ दी है. मसूद इसे “आज़ादी और न्याय की लड़ाई” मानते हैं, जबकि भाजपा और अन्य राजनीतिक दल इसे “देश के स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान” मानते हैं. इस मामले ने भारत में राजनीतिक और ऐतिहासिक प्रतीकों के महत्व पर एक गरमागरम बहस को फिर से छेड़ दिया है.