Home > वायरल > भारत के इस राज्य में कुत्ते जैसी शक्ल बनाने के लिए करते हैं ये काम, सांस लेना भी हो जाता है मुश्किल…जानिय क्या है रिवाज?

भारत के इस राज्य में कुत्ते जैसी शक्ल बनाने के लिए करते हैं ये काम, सांस लेना भी हो जाता है मुश्किल…जानिय क्या है रिवाज?

Apatani Tribe: अरुणाचल प्रदेश की घाटियों में एक अपातानी जनजाति सालों से रहती है। यह जनजाती अपनी अनोखी परंपराओं और संस्कृति के लिए जानी जाती है।

By: Preeti Rajput | Published: August 18, 2025 11:13:48 AM IST



Apatani Tribe: अरुणाचल प्रदेश देश के सबसे सुंदर राज्यों में से एक है। इस राज्य की खूबसूरत गहरी घाटियों में एक अपातानी जनजाति सालों से रहती है। यह जनजाती अपनी अनोखी परंपराओं और संस्कृति के लिए जानी जाती है। इसमें है महिलाओं के चेहरे पर बने टैटू लोगों का ध्यान अपनी तरफ खिंचते हैं। साथ इस जनजाती की महिलाएं बड़े-बड़े नोज-प्लग्स भी पहनती हैं। यह परंपरा एक पहचान ही नहीं बल्कि इसके पीछे कई रहस्मयी कहानियां जुड़ी हुई है।

अपातानी महिलाएं होती हैं बेहद खूबसूरत 

अपातानी महिलाएं काफी ज्यादा सुंदर मानी जाती है। इनकी सुंदरता के कारण आस पास की जनजाती के लोग इन्हें किडनेप कर लेते हैं। जिसके बाद अपने परिवारों ने बेटियों की सुरक्षा के लिए उन्होंने उनके चहरे पर नीले रंग के टैटू गुदवाना शुरू कर दिया। इससे वह और भी ज्यादा खूबसूरत दिखने लगी और वे किडनैपिंग से बच गईं। 

जानें कैसे शूरू हुई ये परंपरा? 

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जब पुरूष लड़ाई में मर जाते थे, तो उनकी आत्माएं वापस घर लौट आती थीं। वह अपनी पत्नियों को पहचान नहीं पाती थीं। फिर शामन जिन्हें पुजारी कहा जाता है, उन्होंने महिलाएं चेहरे पर टैटू बनवाएं, ताकि आत्माएं उन्हें पहचान सकें। यह प्रथा धीरे-धीरे उनकी संस्कृति बन गई। लड़कियों के पहले मासिक धर्म पर ये टैटू गुदवाए जाते थे। माथे से नाक तक एक रेखा खींची जाती थी। साथ ही ठोड़ी पर पांच लकीरें बनाई जाती थी। इन्हें बनाने के लिए कांटेदार सुइयों का इस्तेमाल होता था। साथ ही स्याही के तौर पर सूअर की चर्बी और कालिख का इस्तेमाल किया जाता था। वहीं, नाक में डाले जाने वाले नोज-प्लग जंगल की खास लकड़ी से तैयार किया जाता था। 

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1970 के दशक में बंद हुई परंपरा 

यह प्रथा धीरे-धीरे खूबसूरती और गर्व का प्रतीक बन गई है। अगर किसी महीला के चेहरे पर टैटू और नोज-प्लग नहीं होते तो वह शादी के योग्य नहीं मानी जाती है। यह परंपरा सौंदर्य, उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक बन गई है। जब धीरे-धीरे देश अधुनिकता की तरफ बढ़ने लगा तो अपातानी युवाओं ने इस परंपरा को बोझ समझना शुरू किया। उनका मानना था कि टैटू और नोज प्लग के कारण वह बाहरी दुनिया से अलग कर देते हैं। इस परंपरा पर 1970 के दशक में अपातानी यूथ एसोसिएशन ने सरकार के साथ मिलकर इस परंपरा पर रोक लगा दी।

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