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Meteorites Fall: धरती के इस कोने में क्या है ऐसा खास? गिरते हैं सबसे ज्यादा जलते उल्कापिंड, सुनकर उड़ जाएंगे होश

Meteorites Fall: उल्कापिंड का टूटना और धरती पर आकर गिरना वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बेहद अनोखी घटना मानी जाती हैं। धरती पर कुछ ऐसी जगहें हैं जहाँ उल्कापिंड लगातार गिरते रहते हैं। लेकिन ऐसा क्यों है आइए जानते हैं।

By: Deepak Vikal | Published: August 16, 2025 7:20:04 PM IST



Meteorites Fall: उल्कापिंड का टूटना और धरती पर आकर गिरना वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बेहद अनोखी घटना मानी जाती हैं। आकाश में हमें अक्सर चलते हुए गतिशील उल्कापिंड दिख जाते हैं जिन्हें हम अक्सर आम भाषा में टूटता तारा कहते हैं। यह धरती पर पत्थर या धातु के टुकड़े के रूम में गिरते हैं। ये इतनी गति से धरती पर गिरते हैं कि पृथ्वी की सतह पर बड़े-बड़े गड्ढे बना देते हैं। आपको जानकारी हैरानी होगी कि ये उल्कापिंड यूँ ही किसी रेंडम जगह पर नहीं गिरते हैं या फिर न के बराबर गिरते हैं। धरती पर कुछ ऐसी जगहें हैं जहाँ उल्कापिंड लगातार गिरते रहते हैं। लेकिन ऐसा क्यों है आइए जानते हैं।

इस जहग गिरते हैं सबसे ज्यादा उल्कापिंड

अंटार्कटिका ऐसी जगह है जहाँ सबसे ज़्यादा उल्कापिंडों को गिरते देखा जाता है। इसका कारण वहाँ की बर्फीली चादरें और ठंडा, शुष्क वातावरण है। अंटार्कटिका की बर्फ में उल्कापिंड आसानी से सुरक्षित रह जाते हैं, क्योंकि वहाँ नमी और ऑक्सीजन की कमी के कारण ये नष्ट नहीं होते। बर्फ की सफ़ेद सतह पर काले या गहरे रंग के उल्कापिंड आसानी से दिखाई देते हैं, जिससे वैज्ञानिकों को इन्हें खोजने में मदद मिलती है। नासा और अन्य वैज्ञानिक दल हर साल अंटार्कटिका में हज़ारों उल्कापिंड इकट्ठा करते हैं।

यहाँ भी गिरते हैं ज्यादा उल्कापिंड

इसके अलावा, सहारा रेगिस्तान जैसे रेगिस्तानी इलाके और ऑस्ट्रेलिया के शुष्क मैदान भी उल्कापिंडों के लिए प्रसिद्ध हैं। इन क्षेत्रों में वनस्पति कम होने और खुली भूमि होने के कारण उल्कापिंड आसानी से मिल जाते हैं। भारत में भी महाराष्ट्र की लोनार झील और राजस्थान का रामगढ़ क्रेटर उल्कापिंडों के प्रभाव से बने हैं, जो वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण हैं।

ABP की एक रिपोर्ट के मुताबिक उल्कापिंड मुख्यतः क्षुद्रग्रह बेल्ट (मंगल और बृहस्पति के बीच) से आते हैं। ये छोटे-बड़े पत्थर या धातु के टुकड़े अंतरिक्ष में विचरण करते रहते हैं और जब पृथ्वी की कक्षा में आते हैं, तो गुरुत्वाकर्षण के कारण वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं।

वायुमंडल में घर्षण के कारण ये जलने लगते हैं, जिससे हमें आकाश में चमकती हुई रोशनी दिखाई देती है। कुछ उल्कापिंड इतने बड़े होते हैं कि वे वायुमंडल में पूरी तरह नष्ट नहीं हो पाते और पृथ्वी पर गिरकर गड्ढे बना देते हैं।

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 हर साल लगभग 6,100 उल्कापिंड गिरते हैं

एक अनुमान के अनुसार, पूरी पृथ्वी पर हर साल लगभग 6,100 उल्कापिंड गिरते हैं, लेकिन इनका आकार इतना छोटा होता है कि इनसे कोई नुकसान नहीं होता। बड़े उल्कापिंडों के गिरने की घटनाएँ दुर्लभ हैं।

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