AMRAAM Missile Contract 2025: इन दिनों लगभग पूरी दुनिया ही तावान के दौर से गुजर रही है, ऐसे में हथियारों की अहमियत और ज्यादा बढ़ गई है। इस बीच एक ऐसा हथियार चर्चा में आया है जिसके पीछे के या दो नहीं बल्कि पूरे 19 देशों की सरकार पड़ी हुई है। हाल ही में पेंटागन ने 19 देशों के साथ 3.5 अरब डॉलर का समझौता किया है। यह अब तक का सबसे बड़ा सौदा है माना जा रहा है। इस समझौते के तहत इन देशों को AIM-120 एडवांस्ड मीडियम-रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल (AMRAAM) दी जाएगी।
इस मिसाइल को खरीदने के लिए जिन देशों ने समझौता किया है, उनमें इजराइल, यूक्रेन और ब्रिटेन शामिल हैं। यह समझौता ऐसे समय में हुआ है जब पूरी दुनिया में, खासकर मध्य पूर्व में, तनाव बढ़ गया है और मौजूदा AMRAAM का भंडार खत्म होने की कगार पर है।
इस मिसाइल में ऐसा क्या है खास?
ये मिसाइलें अमेरिका के हर लड़ाकू विमान में, और ज़्यादातर सहयोगी देशों के विमानों में भी लगाई जा सकती हैं। इन्हें आँखों की पहुँच से बाहर के हवाई लक्ष्यों को भेदने के लिए डिज़ाइन किया गया है, लेकिन NASAMS (नेशनल एडवांस्ड सरफेस-टू-एयर मिसाइल सिस्टम) में इनका इस्तेमाल ज़मीनी हमले वाली मिसाइलों के तौर पर भी किया जा रहा है। NASAMS को नॉर्वे की कंपनी कोंग्सबर्ग और रेथियॉन ने मिलकर विकसित किया है। यह वर्तमान में अमेरिका की सुरक्षा करती है और दुनिया के एक दर्जन से ज़्यादा देशों में तैनात है। पिछले तीन वर्षों से यूक्रेन में युद्ध में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।
कई बड़े युद्धों में हो चुकी है इस्तेमाल
अमेरिका ने हूथी विद्रोहियों के ड्रोन मार गिराने, सीरिया और इराक में ड्रोन हमलों को विफल करने और इज़राइल को ईरानी हमलों से बचाने के लिए इन मिसाइलों का व्यापक रूप से इस्तेमाल किया है। यह मिसाइल खराब मौसम सहित किसी भी समय हमला करने में सक्षम है। इसकी गति 1,372 मीटर/सेकंड है। हाल ही में, अमेरिका ने मिस्र को AMRAAM मिसाइलें देने का भी फैसला किया है, जो उसे पहले कभी नहीं दी गई थीं। मिस्र के F-16 विमानों को अब तक AIM-7 स्पैरो और AIM-9 साइडवाइंडर जैसी कम क्षमता वाली मिसाइलों से काम चलाना पड़ रहा था।
स्टॉक की कमी के कारण उत्पादन बढ़ाया जा रहा
AIM-120 मिसाइलों खपत तेजी से बढ़ी और अब इसका उत्पादन अब बहुत तेज़ी से बढ़ाने की जरूरत है जिसके लिए लगातार प्रयास भी किये जा रहे हैं। अब तक हज़ारों मिसाइलें बनाई जा चुकी हैं, लगभग 5,000 का परीक्षण किया जा चुका है, लेकिन हाल के वर्षों में कई मोर्चों पर इनका ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल हुआ है, जिससे स्टॉक कम हो गया है। अब उत्पादन बढ़ाने के लिए भारी मात्रा में धन खर्च किया जा रहा है, विशेषकर ऐसे समय में जब यूक्रेन और मध्य पूर्व में चल रहे सैन्य अभियानों के कारण मिसाइल भंडार लगातार कम हो रहा है।