Home > वायरल > Screen Addiction: कमजोर दिमाग, अवसाद… स्क्रीन टाइम बर्बाद कर रहा युवाओं की जिंदगी, रिपोर्ट देख पैरों तले से खिसक जाएगी जमीन

Screen Addiction: कमजोर दिमाग, अवसाद… स्क्रीन टाइम बर्बाद कर रहा युवाओं की जिंदगी, रिपोर्ट देख पैरों तले से खिसक जाएगी जमीन

Screen Addiction: आजकल ज़्यादातर युवा और किशोरों की यही दिनचर्या है कि वे बाहर के खेलों पर कम ध्यान देते हैं और दिन-रात मोबाइल पर स्क्रॉल करते हुए अपना समय बिताते हैं। भारत भर के बच्चे और किशोर डूमस्क्रॉलिंग की दुनिया में फँसे हुए हैं।

By: Deepak Vikal | Published: August 12, 2025 8:38:56 PM IST



Screen Addiction: आजकल ज़्यादातर युवा और किशोरों की यही दिनचर्या है कि वे बाहर के खेलों पर कम ध्यान देते हैं और दिन-रात मोबाइल पर स्क्रॉल करते हुए अपना समय बिताते हैं। भारत भर के बच्चे और किशोर डूमस्क्रॉलिंग की दुनिया में फँसे हुए हैं। वे लगातार अनावश्यक और बेकार रील्स, मीम्स और कुत्ते-बिल्ली के वीडियो स्वाइप करते रहते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि अगर किसी को सिगरेट की लत लग जाती है, तो सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी के संकेत होते हैं, लेकिन मोबाइल फ़ोन में कोई चेतावनी नहीं होती। यह लत चुपके से किशोरों के दिमाग को नया रूप दे रही है। एक तरह से, यह एक खामोश संकट है जिसका मानसिक स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ता है।

हर स्वाइप के पीछे छिपा तनाव

News 18 ने टाइम्स ऑफ इंडिया के हवाले से बताया कि मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल एक जिज्ञासा या व्यस्तता के तौर पर शुरू हुआ था, लेकिन जल्द ही यह एक बाध्यकारी व्यवहार में बदल गया। इसकी लत के कारण एकाग्रता की कमी, बढ़ती चिंता और ऑनलाइन सत्यापन पर निर्भरता तेज़ी से नई सामान्य बात बनती जा रही है। माता-पिता अक्सर असहाय महसूस करते हैं और कभी-कभी बच्चे की अपनी डिजिटल गतिविधियाँ सीमा पार कर जाती हैं। इसका एक उदाहरण यह है कि स्कूलों में बढ़ती आक्रामकता और एकाग्रता में कमी की शिकायतें बढ़ रही हैं।

युवा ‘वर्चुअल ऑटिज़्म’ के शिकार हो रहे हैं

सोशल मीडिया पर हाल ही में हुए भारतीय शोध से पता चला है कि स्क्रॉलिंग के कारण आज के युवा पूरी तरह से मानसिक बीमारी के शिकार हो गए हैं। 2024 के एक अध्ययन में 1,392 किशोरों और युवा वयस्कों में से 37.9 प्रतिशत में अवसाद और 33.3 प्रतिशत में चिंता के लक्षण पाए गए। इन लोगों में स्क्रीन टाइम और सोशल मीडिया का उपयोग दोनों बढ़ गए हैं। इन सबके कारण नींद खराब होती है और शारीरिक गतिविधि कम हो जाती है।

Independence Day 2025: नेहरू और जिन्ना, कौन था ज्यादा अमीर? किसके पास था कितना पैसा, जानकर हैरान रह जाएंगे

छोटे बच्चों के लिए प्रमाण और भी स्पष्ट हैं: तमिलनाडु में पाँच साल से कम उम्र के 73 प्रतिशत बच्चे स्क्रीन पर बहुत अधिक समय बिताते हैं, और स्क्रीन के संपर्क में रहने से बौद्धिक विकास संबंधी जोखिम जुड़े हैं। इससे भाषा सीखने में भी कमी आई है, यानी दिमागी शक्ति कमज़ोर हुई है। कुछ विशेषज्ञों ने स्क्रीन के अत्यधिक संपर्क को ऑटिज़्म जैसे लक्षणों और बोलने में देरी से जोड़ा है। जब स्क्रीन टाइम को नियंत्रित किया गया, तो ऐसे लोगों में उल्लेखनीय सुधार देखा गया। कुछ भारतीय लेखकों ने “वर्चुअल ऑटिज़्म” की चेतावनी दी है।

ढाबे की रोटी के अंदर लिपटी मिली छिपकली, देखते ही युवकों को आ गई उल्टी, Video देख होटलों में खाना कर देंगे बंद

Advertisement