अनिल चौधरी की रिपोर्ट, Indirapuram Shamshan Ghat News, Ghaziabad: गाजियाबाद का इंदिरापुरम इलाका आधुनिक सुविधाओं और पॉश लाइफस्टाइल के लिए जाना जाता है। यहां की ऊंची-ऊंची इमारतें, चौड़ी सड़कें और चमचमाती लाइटें लोगों को आकर्षित करती हैं। लेकिन इसी इलाके का श्मशान घाट आज उपेक्षा का शिकार है। हालात इतने खराब हैं कि शोक संतप्त परिवारों को अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार मोबाइल की टॉर्च और मोमबत्ती की रोशनी में करना पड़ रहा है।
इंदिरापुरम श्मशान घाट में बिजली नहीं
पिछले करीब डेढ़ महीने से इंदिरापुरम श्मशान घाट में बिजली नहीं है। यहां सिर्फ इंदिरापुरम ही नहीं बल्कि वैशाली, वसुंधरा, बहरामपुर और खोड़ा जैसे घनी आबादी वाले इलाकों से भी लोग अंतिम संस्कार के लिए आते हैं। ऐसे में बिजली की अनुपलब्धता उनके दर्द को और बढ़ा देती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि श्मशान घाट के पास बनी बहुमंजिला इमारतों के निर्माण के दौरान बिजली की तारें टूट गई थीं। इसके बाद से बिजली आपूर्ति बहाल नहीं हो पाई है।
मोबाइल की रोशनी में करना पड़ा अंतिम संस्कार
लोगों ने कई बार बिजली विभाग से शिकायत की, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। हाल ही में बहरामपुर की एक 28 वर्षीय युवती का अंतिम संस्कार मोबाइल की रोशनी में करना पड़ा। इस घटना की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं और प्रशासन की लापरवाही पर लोगों ने नाराजगी जताई। श्मशान घाट के पुजारी ने बताया कि यहां पिछले 45 दिनों से बिजली नहीं है। नतीजा यह है कि पानी की मोटर भी नहीं चल पाती। अंतिम संस्कार के बाद लोग हाथ-पैर धोने जैसी मूलभूत जरूरतों के लिए तरस जाते हैं। बरसात के दिनों में जलभराव और गंदगी से हालात और बदतर हो जाते हैं।
अधिकारियों का दावा है कि बिजली आपूर्ति शुरू कर दी जाएगी
श्मशान घाट जैसे संवेदनशील स्थान पर बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव बेहद शर्मनाक स्थिति है। खासतौर पर तब जब यह क्षेत्र गाजियाबाद के सबसे विकसित इलाकों में गिना जाता है और यहां हजारों परिवार रहते हैं। बिजली विभाग के अधिकारियों का दावा है कि टूट चुकी तारों को फिर से जोड़ा जा चुका है और जल्द ही बिजली आपूर्ति शुरू कर दी जाएगी। लेकिन जब तक यह व्यवस्था दुरुस्त नहीं होती, तब तक शोकाकुल परिवारों को अपनों की विदाई अंधेरे में ही करनी पड़ेगी। लोगों का कहना है कि प्रशासन को इस दिशा में तुरंत ठोस कदम उठाने चाहिए ताकि अंतिम संस्कार जैसे संवेदनशील कार्यों के दौरान किसी परिवार को और अधिक पीड़ा न सहनी पड़े।
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