BSP Rally in Lucknow: उत्तर प्रदेश की राजनीति का ज़िक्र बसपा प्रमुख मायावती के बिना अधूरा है. मायावती भले ही लगातार चुनावी हार के चक्रव्यूह से मुक्त न हो पा रही हों, लेकिन राज्य की सियासत में उनकी मौजूदगी को नकारा नहीं जा सकता. अब मायावती ने एक बार फिर राज्य के अन्य राजनीतिक दलों की धड़कनें बढ़ा दी हैं. 9 अक्टूबर, यानी कांशीराम की पुण्यतिथि, उत्तर प्रदेश की सियासत में एक अहम मोड़ साबित होने वाली है. गुरुवार को मायावती एक बार फिर लखनऊ के कांशीराम स्मृति पार्क से हुंकार भरेंगी. उत्तर प्रदेश में अगले कुछ महीनों में पंचायत चुनाव होने हैं, उसके बाद 2027 में विधानसभा चुनाव होंगे. माना जा रहा है कि इस रैली के ज़रिए मायावती संगठन को मज़बूत करने का एक नया संदेश देंगी.
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मायावती के साथ नज़र आएंगे ये नेता
रैली की एक ख़ास बात यह है कि मायावती के अलावा मंच पर उनके छह प्रमुख नेता भी मौजूद रह सकते हैं. इन छह नेताओं के लिए अलग-अलग कुर्सियों की व्यवस्था की जाएगी. उत्तर प्रदेश की राजनीति पर पैनी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सैयद कासिम बताते हैं कि मायावती के छह भरोसेमंद नेताओं में पहला नाम उनके भाई आनंद कुमार का है, जो राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद संभाल रहे हैं. मंच पर दूसरी सीट उनके भतीजे आकाश आनंद के पास होगी, जिन्हें मायावती ने हाल ही में राष्ट्रीय संयोजक नियुक्त किया है. दोनों नेताओं को एक साथ मंच पर लाकर मायावती संगठन को यह स्पष्ट संदेश देंगी कि परिवार पूरी तरह एकजुट है.
तीसरा नाम सतीश चंद्र मिश्रा का है। बसपा ने चाहे कितनी भी मुश्किलों का सामना किया हो, सतीश चंद्र मिश्रा हमेशा एक मज़बूत सेनापति की तरह मायावती के साथ खड़े रहे हैं. पार्टी के कई पूर्व दिग्गज नेताओं ने दूसरी पार्टियों में अपनी संभावनाएँ तलाशी हैं, लेकिन बसपा के इस राष्ट्रीय महासचिव की निष्ठा कभी कम नहीं हुई. मंच पर बाकी तीन सीटें पार्टी के एकमात्र विधायक उमाशंकर सिंह, राष्ट्रीय महासचिव मुनकाद अली और प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल के लिए होंगी.
लखनऊ में बसपा रैली की तैयारियाँ पूरी
बसपा ने 9 अक्टूबर को लखनऊ में होने वाली रैली के लिए व्यापक तैयारियाँ की हैं. पूरे शहर को नीले झंडों, पोस्टरों और बैनरों से सजा दिया गया है. अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने की कोशिश में जुटी मायावती इस रैली के ज़रिए एक बार फिर अपनी ताकत दिखा सकती हैं. अगर ऐसा होता है, तो निस्संदेह उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर करवट बदलेगी. बसपा के गिरते ग्राफ के बाद, 2017 के चुनावों को योगी बनाम अखिलेश के रूप में देखने वाले राजनीतिक विश्लेषक भी मायावती के प्रवेश की संभावना से इनकार नहीं कर पाएंगे.
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