Car ADAS System: वर्तमान समय में लगभग हर नई कार में एडवांस्ड ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम ( ADAS) एक बेहद चर्चित फीचर है. कार कंपनियां ड्राइविंग को सुरक्षित और आसान बनाने के लिए इसे पेश कर रही हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह तकनीक वाकई भारत जैसी सड़कों पर काम करती है, जहां ट्रैफिक नियमों से ज्यादा इरादे मायने रखते हैं? ADAS फीचर ड्राइविंग के दौरान आपकी मदद करने और मानवीय भूल की संभावना को कम करने के लिए डिजाइन किया गया है. इसमें अडैप्टिव क्रूज़ कंट्रोल, लेन कीप असिस्ट, ब्लाइंड स्पॉट मॉनिटरिंग और ऑटोनॉमस इमरजेंसी ब्रेकिंग जैसे कई फ़ीचर शामिल हैं.
कागजों पर काफी बढ़िया लग रहा यह सिस्टम
कागजों पर यह सिस्टम तो बेहद उपयोगी लगता है लेकिन यह ड्राइविंग को ज्यादा स्मार्ट और सुरक्षित बनाता है. लेकिन जब भारतीय सड़कों की हकीकत की बात आती है, तो चीज़ें थोड़ी पेचीदा हो जाती हैं. अगर हम भारत के सड़कों की बात करें तो भारतीय सड़कें अप्रत्याशितता का पर्याय हैं. क्योंकि कभी लेन मार्किंग गायब होती हैं, कभी दोपहिया वाहन हाईवे पार कर जाते हैं, कभी पैदल यात्री हाईवे पार कर जाते हैं, और इसके अलावा, आवारा जानवर कभी भी आ सकते हैं.
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भारतीय सड़कों पर कारगर होगा यह सिस्टम?
ऐसी परिस्थितियों में लेन कीप असिस्ट या अडेप्टिव क्रूज़ कंट्रोल जैसे सिस्टम ठीक से काम नहीं कर पाते क्योंकि ये साफ लेन और स्थिर ट्रैफिक प्रवाह पर निर्भर करते हैं. कभी-कभी ये सिस्टम स्थिति का गलत आकलन कर लेते हैं, या तो ज़रूरत से ज़्यादा ब्रेक लगा देते हैं या समय पर प्रतिक्रिया नहीं देते. आगे की टक्कर की चेतावनी, ब्लाइंड स्पॉट डिटेक्शन और पीछे की ओर क्रॉस-ट्रैफ़िक अलर्ट जैसी कुछ सुविधाएं भारतीय सड़कों पर बेहद कारगर साबित हुई हैं. ये सिस्टम, खासकर शहरों और हाईवे पर ड्राइविंग के दौरान, एक सुरक्षा परत का काम करते हैं. ये सुविधाएं ड्राइवर की जगह नहीं लेतीं, बल्कि अतिरिक्त सहायता प्रदान करती हैं.
जानकारी सामने आ रही है कि अलग-अलग कार कंपनियां अब ADAS सिस्टम को भारत की सड़कों के मुताबिक बना रही हैं. अब ये सिस्टम लोकल ट्रैफिक पैटर्न, सड़क के डिजाइन और यहां तक कि आवारा जानवरों की पहचान तक करने के लिए ट्यून किए जा रहे हैं. इससे यह टेक्नोलॉजी अब पहले से ज्यादा व्यावहारिक होती जा रही है.
ADAS को ऑटोपायलट समझना कितना सही?
अगर आप ADAS को भारत में ऑटोपायलट समझ रहे हैं तो आप एकदम गलत समझ रहे हैं. यह अभी भी एक सीखने और विकसित होने वाला सिस्टम है, जो तभी सही काम करता है जब ड्राइवर खुद सतर्क रहे. जब तक सड़क ढांचा, ट्रैफिक अनुशासन और टेक्नोलॉजी का स्थानीय अनुकूलन और बेहतर नहीं होता. ADAS को एक मददगार साथी के रूप में ही देखा जाना चाहिए, न कि पूरी तरह भरोसेमंद ड्राइवर के रूप में. भारत में टेक्नोलॉजी सड़कें जरूर सुरक्षित बना सकती है, लेकिन स्टेयरिंग पर पूरा कंट्रोल अभी भी इंसान के ही हाथों में होना चाहिए.
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