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Navratri 2025: नवरात्रों में क्यों लगाते हैं काले चने, पूड़ी और हलवा का भोग?

Navratri 2025: नवरात्री में विशेष कर कन्यापूजन वाले दिन क्यों खास है पूड़ी, हलवा और काले चने का भोग? जानेंगे इसके स्वस्थ्य वर्धक गुण और धार्मिक महत्व.

Published by Swarnim Suprakash

Navratri 2025: नवरात्री, दुर्गा पूजा और दशहरा का उत्सव समूचे देश में चला हुआ है. इस पर्व और व्रत के दौरान देवी के उपासक इन दस दिनों तक माता के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा और आराधना करते हैं. साधकों के साधना करने के लिए भी यह समय उपयुक्त बताया जाता है. पूजा और आराधना के बाद मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों को तिथि अनुसार भोग भी लगाया जाता है. 

देवी को पसंद है काले चने, पूड़ी और हलवा का भोग

समाज में नवरात्रों के दौरान माता को काले चने, पूड़ी और हलवा का भोग लगाने की परंपरा चली आ रही है, जो धार्मिक और स्वास्थ्य दोनों ही दृष्टिकोण से मतत्वपूर्ण है. नवरात्रों के दौरान देवी मां को काले चने, पूड़ी और हलवा का भोग लगाने की परंपरा देवी भागवत पुराण में वर्णित बताई जाती है. इस परंपरा का निर्वाहन देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना के दौरान की जाती रही है, जिसमें कन्याओं को देवी का रूप माना जाता है और उन्हें यह भोग खिलाया जाता है. विशेष कर कन्या पूजन के दिन नवरात्री व्रतधारी, तांत्रिक साधक और सामान्य आस्थावान गृहस्त भी कन्याओं को काले चने, हलवा और पूड़ी का भोग खिलातेहैं और अपनी धार्मिक आस्था के साथ-साथ समाज को महिलाओं का सम्मान करने का भी सन्देश देते हैं. 

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इस विशेष भोग का स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से महत्व

नवरात्रों में लगाए जाने वाला भोग जिनमे काले चने, पूड़ी और हलवा शामिल है वह स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी बहुत लाभकारी है. काले चने में प्रोटीन, फाइबर और आयरन होता है, जबकि हलवे में पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा देने वाले तत्व मौजूद होते हैं. नवरात्री के दौरान पूड़ियाँ भी देसी घी में बनाई जाती है जो शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाती है. पूड़ी पेट भरने वाला मुख्य आहार भी होती है.

इस विशेष भोग का धार्मिक महत्वा

पोषण की देवी अन्नपूर्णा को समर्पित है हलवा, पूरी और चने का भोग. इससे घर में अन्न-धन की प्रचुरता बनी रहती है और माता अन्नपूर्णा का आशीर्वाद भी बना रहता है. भोग में अर्पित होने वाले ये व्यंजन सात्विक श्रेणी में आते हैं, जो पवित्रता और शुद्धता का सूचक मन जाता है. बता दें कि नवराति के अष्टमी और नवमी तिथि को छोटी कन्याओं को माता दुर्गा का ही रूप मानकर पूजा जाता है और यही प्रसाद खिला कर पुण्य अर्जित किया जाता है. हलवा,पूरी और कला चना पकना एक आत्मीय और घरेलू काम है, जो ह्रदय से की जाती है. इसीलिए यह श्रद्धा और प्रेम का भी प्रतिक है. 

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