Jagdeep Dhankhar Resigns: मानसून सत्र के पहले दिन उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे चुके जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा की कार्यवाही शुरू की और सदन को संबोधित किया। उन्होंने राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को जन्मदिन की शुभकामनाएँ दीं, हालाँकि देर शाम उन्होंने अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया। इसकी वजह जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ विपक्ष द्वारा लाए गए महाभियोग प्रस्ताव का संज्ञान लेना माना जा रहा है, लेकिन असली वजह सिर्फ़ विपक्ष के प्रस्ताव का संज्ञान लेना नहीं है, बल्कि मामला इससे कहीं आगे का है।
केंद्र सरकार ने जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में महाभियोग प्रस्ताव पेश करने की योजना जरूर बनाई थी। इसके लिए सरकार ने विपक्ष से बात भी की थी और राहुल गांधी ने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर भी कर दिए थे। ऐसे में विपक्ष द्वारा राज्यसभा में प्रस्ताव का संज्ञान लेने से भाजपा नाराज़ ज़रूर है, लेकिन इसकी वजह जगदीप धनखड़ का न्यायपालिका से टकराव था। धनखड़ से पहले, न्यायपालिका से टकराव के कारण किरण रिजिजू को कानून मंत्री का पद गँवाना पड़ा था।
न्यायपालिका से टकराव की भारी कीमत चुकानी पड़ी धनखड़ को
देश के उपराष्ट्रपति जैसे पद से इस्तीफ़ा देने की वजह सामान्य नहीं है, लेकिन जगदीप धनखड़ को लेकर भाजपा के रुख़ में आए बदलाव की वजह बड़ी है। धनखड़ साल 2022 में भारत के उपराष्ट्रपति बने थे। तब से वे लगातार चर्चा में हैं। जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला सामने आने के बाद, धनखड़ एनजेएसी जैसी संस्था को बहाल करने के मोर्चे पर थे।
वहीं, मोदी सरकार स्पष्ट रूप से एनजेएसी जैसे किसी भी कदम से ज्यूडिशियरी को नाराज़ करने के मूड में नहीं थी। इसी के चलते, गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में एक चैनल के कार्यक्रम में स्पष्ट कहा था कि सरकार का ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। इसके बाद भी धनखड़ लगातार इस मुद्दे पर सार्वजनिक बयान दे रहे थे, जिससे यह संदेश जाने लगा कि यही सरकार का संदेश है।
धनखड़ के बयान, सरकार की चिंता
पिछले कुछ समय से धनखड़ न्यायपालिका को लेकर जिस तरह की टिप्पणियां कर रहे थे, उससे सवाल उठने लगे हैं। किसी भी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति ने न्यायपालिका पर इतना खुलकर हमला नहीं बोला था। चाहे कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल हो या लोकतंत्र में संसद की ‘सर्वोच्चता’ का, उन्होंने खुलकर अपने विचार व्यक्त किए। धनखड़ के बयानों पर प्रतिक्रिया देना सरकार के लिए महंगा पड़ रहा था।
धनखड़ ने न्यायपालिका पर सबसे बड़ा सवाल अनुच्छेद 142 के इस्तेमाल को लेकर उठाया है, जिसे उन्होंने लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ ‘परमाणु मिसाइल’ तक कह दिया था। राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए निर्णय लेने की समय-सीमा तय करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से वे बेहद असहज थे।
धनखड़ को इस्तीफा देना पड़ा
दिल्ली उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के घर से नकदी बरामद हुई थी। इसके बाद जब कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई, तो उन्होंने कॉलेजियम प्रणाली पर निशाना साधा। सोमवार को जब विपक्ष ने राज्यसभा में न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया, तो धनखड़ ने उसे मंजूरी देने में देर नहीं की, जबकि सरकार लोकसभा में ऐसा ही प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही थी। धनखड़ के इस रवैये से सरकार नाराज़ हो गई और बात उनके इस्तीफ़े तक पहुँच गई।
संयोगवश, मानसून सत्र शुरू होने के अगले दिन 22 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 142 के तहत न्यायपालिका द्वारा अपने फैसले के लिए समय सीमा तय करने के राष्ट्रपति के 14 सवालों पर सुनवाई होनी है। उससे पहले, यशवंत वर्मा के महाभियोग को धनखड़ ने राज्यसभा में स्वीकार कर लिया था, जिसके कारण मामला काफी बढ़ गया था।
मोदी सरकार टकराव नहीं चाहती?
संसद के दोनों सदनों में जज को हटाने पर सरकार की सहमति है, लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि धनखड़ इस प्रस्ताव के ज़रिए जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ जाँच पैनल में और ज़्यादा राजनीतिक दखलअंदाज़ी चाहते थे। इस पैनल का गठन लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के उपसभापति मिलकर करेंगे। धनखड़ इस बीच न्यायपालिका पर लगातार हमले करते रहे हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति जिस तरह से जस्टिस वर्मा मामले में व्यक्तिगत रुचि दिखा रहे थे, उससे सरकार खुश नहीं थी। सरकार, कुछ कारणों से, न्यायपालिका को लेकर जगदीप धनखड़ के विचारों से सहमत नहीं है। इसी वजह से धनखड़ को इस्तीफ़ा देना पड़ा।
वहीं, क़ानून मंत्री रहते हुए किरण रिजिजू ने न्यायपालिका पर कार्यपालिका की शक्तियों का दुरुपयोग करने के कई आरोप लगाए थे, इसलिए 2023 में उन्हें मंत्रालय से हटाकर उनकी जगह अर्जुन मेघवाल को लाया गया। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर अपनी मर्ज़ी से कानून बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाया। उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया कि ऐसी स्थिति में संसद को बंद कर देना चाहिए। भाजपा ने निशिकांत दुबे के इस बयान को सिरे से खारिज कर दिया था।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने के बाद, ऐसा लग रहा है कि मोदी सरकार ने न्यायपालिका के साथ संबंध सुधारने का फैसला किया है। आपको बता दें कि NJAC एक आयोग था जो जजों की नियुक्ति करता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था। ऐसे में सरकार देश की न्यायपालिका के साथ राजनीतिक संतुलन बनाने की कोशिश कर रही है, जिसके चलते धनखड़ से लेकर रिजिजू तक, सभी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी है।