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मुगल इतिहास की सबसे दुखद कहानी, जब बेटा ही बन गया था अपने बाप का काल!

Aurangzeb Story:औरंगज़ेब और उसके पिता शाहजहाँ के बीच तनाव और दुश्मनी की एक ऐतिहासिक कहानी है।बता दे कि, दोनों के बीच यह दुश्मनी मुग़ल साम्राज्य में उत्तराधिकार की राजनीति  विवादों से जुड़ी है।

By: Akriti Pandey | Published: August 24, 2025 1:54:01 PM IST



Mughal emperor story: औरंगज़ेब और उसके पिता शाहजहाँ के बीच तनाव और दुश्मनी की एक ऐतिहासिक कहानी है।बता दे कि, दोनों के बीच यह दुश्मनी मुग़ल साम्राज्य में उत्तराधिकार की राजनीति  विवादों से जुड़ी है। शाहजहाँ के चार पुत्र थे – दारा शिकोह, शाह शुजा, औरंगज़ेब और मुराद बख्श, सभी गद्दी के दावेदार थे। मुग़ल साम्राज्य में उत्तराधिकार की कोई निश्चित व्यवस्था नहीं थी। शाहजहाँ स्पष्ट रूप से अपने ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह को अपना उत्तराधिकारी मानता था और उसे विशेष महत्व देता था। औरंगज़ेब शाहजहाँ का तीसरा पुत्र था, यह उसे अस्वीकार्य था।

भाइयों की गद्दी करना चाहता था हासिल

औरंगज़ेब स्वयं को एक अधिक योग्य और रूढ़िवादी इस्लामी शासक मानता था। दारा की उदार धार्मिक नीतियाँ और सूफी विचारधारा, औरंगज़ेब की रूढ़िवादी सुन्नी विचारधारा के विपरीत थीं। दारा शिकोह के प्रति शाहजहाँ के विशेष स्नेह ने औरंगज़ेब को नाराज़ कर दिया। औरंगज़ेब को लगा कि उसके पिता उसकी सैन्य और प्रशासनिक क्षमताओं की अनदेखी कर रहे हैं।औरंगज़ेब एक रणनीतिकार था। वह अपने भाइयों को हराकर गद्दी हासिल करना चाहता था, साथ ही अपने पिता की नीतियों को भी बदलना चाहता था। उसे शाहजहाँ की विलासिता, ताजमहल जैसी भव्य इमारतें और उदार धार्मिक नीतियाँ पसंद नहीं थीं।

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बेरहमी से अपने भाइयों की थी हत्या

1657 में  शाहजहाँ की गंभीर बीमारी की खबर फैली और यह अफवाह फैली कि उसकी मृत्यु हो गई है। दारा शिकोह ने दिल्ली में खुद को बादशाह घोषित करने की तैयारी शुरू कर दी। औरंगज़ेब ने इसे अपने खिलाफ एक साजिश माना और अपने भाइयों के साथ मिलकर विद्रोह शुरू कर दिया। औरंगज़ेब ने अपने भाइयों दारा शिकोह, शाह शुजा और मुराद की बेरहमी से हत्या कर दी, इस घटना से शाहजहाँ को गहरा मानसिक कष्ट हुआ। 1658 में, औरंगज़ेब ने अपने भाइयों को हराकर और दारा शिकोह की हत्या करके मुग़ल सिंहासन पर कब्ज़ा कर लिया। औरंगज़ेब मुग़ल साम्राज्य का छठा बादशाह बना।

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अपने ही पिता को किया था अपमानित


शाहजहाँ को आगरा के किले में नज़रबंद कर दिया गया। उसे शाही महल से बाहर निकालकर एक छोटे से हिस्से में रखा गया जहाँ से वह ताजमहल देख सकता था। यह नज़रबंदी लगभग आठ वर्षों तक, शाहजहाँ की मृत्यु (1666) तक चली। औरंगज़ेब अपने पिता की फिजूलखर्ची और उदारता को साम्राज्य की कमज़ोरी का कारण मानता था। शाहजहाँ के लिए यह एक व्यक्तिगत और राजनीतिक त्रासदी थी। वह एक शक्तिशाली सम्राट था, लेकिन अपने अंतिम वर्षों में उसे अपने ही बेटे ने अपमानित करके कैद कर लिया।

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