जम्मू से अजय जंडयाल की रिपोर्ट
Jammu Disaster: किश्तवाड़ ज़िले के आपदा-ग्रस्त चिसोटी गाँव में शनिवार को बचाव अभियान के तीसरे दिन राहतकर्मियों ने विशाल चट्टानों को हटाने के लिए विस्फोटक का इस्तेमाल किया। ये चट्टानें राहत कार्यों में बाधा डाल रही थीं। अधिकारियों ने बताया कि हर बीतते घंटे के साथ जीवित बचे लोगों को ढूंढने की उम्मीदें कम हो रही हैं और अब पूरी टीम समय से जंग लड़ रही है।
आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, भीषण बादल फटने और अचानक आई बाढ़ में अब तक 57 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें तीन सीआईएसएफ कर्मी और एक विशेष पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं, जबकि 82 लोग अभी भी लापता हैं। अब तक 167 लोगों को बचाया गया है, जिनमें कई गंभीर रूप से घायल हैं।
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यह त्रासदी 14 अगस्त को दोपहर करीब 12:25 बजे चिसोटी मचैल माता यात्रा के अंतिम मोटरेबल गांव में घटी। बादल फटने और मलबे की बाढ़ ने पल भर में अस्थायी बाज़ार, यात्रियों के लिए लगाए गए लंगर और एक सुरक्षा चौकी को बहा दिया। आपदा की मार से 16 मकान, कई सरकारी भवन, तीन मंदिर, चार आटा चक्कियाँ, 30 मीटर लंबा पुल और दर्जन भर से अधिक वाहन भी क्षतिग्रस्त हुए। बाढ़ के साथ बहकर आए विशाल पत्थर खासकर लंगर स्थल के आसपास जमा हो गए थे, जिन्हें मशीनों से हटाना संभव नहीं था और इसलिए विस्फोटकों का सहारा लेना पड़ा।
नेताओं ने किया प्रभावित क्षेत्र का दौरा
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला शनिवार सुबह चिसोटी पहुँचे और प्रभावित परिवारों से मुलाकात की। उन्होंने मृतकों के परिजनों के लिए *दो लाख रुपये, गंभीर रूप से घायलों के लिए एक लाख रुपये और मामूली चोटिलों के लिए 50 हजार रुपये की राहत राशि* की घोषणा की। पूरी तरह क्षतिग्रस्त मकानों के लिए एक लाख रुपये, बुरी तरह क्षतिग्रस्त मकानों के लिए 50 हजार रुपये और आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त मकानों के लिए 25 हजार रुपये* देने की घोषणा की गई।
मुख्यमंत्री का आश्वासन
मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया कि तात्कालिक मदद के साथ-साथ दीर्घकालिक पुनर्वास भी सुनिश्चित किया जाएगा। उन्होंने कहा, “हम इस दुख की घड़ी में चिसोटी के लोगों के साथ खड़े हैं। सरकार हर संभव मदद करेगी ताकि प्रभावित परिवार अपनी ज़िंदगी फिर से बसा सकें।” स्थानीय लोगों ने उनकी मौजूदगी का स्वागत किया और कहा कि मुख्यमंत्री ने घर-घर जाकर पीड़ित परिवारों की बात सुनी और उनकी तकलीफ़ें समझीं।
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केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह, जो राज्य के पुलिस महानिदेशक नलिन प्रभात के साथ शुक्रवार देर रात मौके पर पहुँचे थे, ने भी राहत कार्यों का जायज़ा लिया। हालांकि कुछ ग्रामीणों ने नाराज़गी जताई कि मंत्री ने प्रभावितों से बात नहीं की। “हमें मुख्यमंत्री की मौजूदगी से राहत मिली है क्योंकि उन्होंने घर-घर जाकर हमारी बात सुनी। हमें उम्मीद है कि वे न सिर्फ मुआवज़ा देंगे बल्कि सुरक्षित जगहों पर पुनर्वास और मृतकों के परिजनों को नौकरी भी देंगे,” गाँव के निवासी रंगील सिंह ने कहा।
ज़मीन पर जुटी विशाल राहत मशीनरी
राहत और बचाव कार्यों में सेना, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ), राज्य आपदा मोचन बल (एसडीआरएफ), बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइज़ेशन (बीआरओ), पुलिस और स्थानीय स्वयंसेवक लगे हुए हैं। दर्जनभर जेसीबी और भारी मशीनों के साथ डॉग स्क्वॉड और अन्य विशेष उपकरणों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।
वरिष्ठ अधिकारी—मुख्य सचिव अतल दुल्लू, डेल्टा फ़ोर्स के जीओसी मेजर जनरल ए.पी.एस. बल, सीआईएसएफ डीआईजी एम.के. यादव, जम्मू संभागीय आयुक्त रमेश कुमार, आईजीपी जम्मू भीमसेन टूटी, डीसी किश्तवाड़ पंकज कुमार शर्मा और एसएसपी नरेश सिंह मौके पर डेरा डाले हुए हैं और सीधे राहत कार्यों की निगरानी कर रहे हैं।
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तीसरे दिन भी स्थगित रही मचैल माता यात्रा
वार्षिक मचैल माता यात्रा, जो 25 जुलाई से शुरू हुई थी और 5 सितंबर तक चलनी थी, लगातार तीसरे दिन भी स्थगित रही। 8.5 किलोमीटर लंबी यह कठिन पदयात्रा चिसोटी से ही शुरू होती है, जो अब मलबे, मिट्टी और आँसुओं के बोझ तले दब चुका है।
अधिकारियों ने बताया कि अब तक मिले 50 शवों की पहचान कर उनके परिजनों को सौंप दिया गया है। राहत दल लगातार मलबा हटाने और लापता लोगों की तलाश में लगे हैं। जैसे-जैसे समय बीत रहा है, अभियान का ज़ोर बचाव से हटकर शवों की बरामदगी पर शिफ्ट हो रहा है, ताकि शोकाकुल परिवारों को कम से कम अंतिम विदाई का सुकून मिल सके।

