humayun tomb collapse: स्वतंत्रता दिवस की खुशियों के बीच मातम तब पसर गया जब दिल्ली का प्रसिद्ध हुमायूं का मकबरा के दो कमरों की छत का एक हिस्सा गिर गया। 16वीं शताब्दी की शान यह मकबरा हर दिन देश-विदेश के सैलानियों से गुलजार रहता है। लेकिन शुक्रवार 15 अगस्त की शाम को बीते दो दिनों की बारिश के बीच मकबरे के पास स्थित एक दरगाह की दो कमरों की छत गिर जाने से 5 लोगों की मौत हो गई, जिनमें 3 महिलाएँ भी शामिल थीं, जबकि कई लोग घायल हुए। पुलिस और अग्निशमन विभाग के कर्मचारी मौके पर मौजूद हैं, इलाके की घेराबंदी कर दी गई है। लेकिन इस हादसे ने न केवल हुमायूं के मकबरे बल्कि दिल्ली की अन्य प्राचीन इमारतों की सुरक्षा और रखरखाव पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
आइए जानते हैं हुमायूं के मकबरे से जुड़ी 150 कब्रों के पीछे की कहानी:
निर्माण का समय और प्रयोजन: हुमायूं के मकबरे का निर्माण हुमाऊं के निधन के 14 साल बाद उनकी विधवा बीगा बेगम (हाज्जीग बेगम) ने 1569–70 में कराया। उस समय इस मकबरे पर लगभग 1.5 मिलियन रुपए की लागत आई थी।
मुगल वंश का कब्रिस्तान: मकबरे का वास्तुकार मीराक मिर्जा धीयाथ था और समय के साथ यह मकबरा शाही परिवार के सदस्यों को दफनाने के लिए इस्तेमाल होने लगा और यहां मुगल वंश के लगभग 150 कब्रें हैं। इसे मुगल वंश का प्रमुख कब्रिस्तान माना जाता है।
स्थान और डिजाइन: यह मकबरा एक बड़े पार्क के केंद्र में स्थित है और इसकी योजना चार-आंगना शैली में बनाई गई थी। यहाँ ताल और जल प्रवाहिकाओं का सुंदर संयोजन भी है। मकबरे का मुख्य प्रवेश द्वार दक्षिण की ओर है, जबकि पश्चिम में एक अन्य द्वार भी मौजूद है। इसके अलावा, पूर्व और उत्तर की दीवारों के बीच मंडप और स्नानगृह भी स्थित हैं।
मुगलकालीन स्थापत्य कला का नमूना: मकबरा ऊँचे और चौड़े चबूतरे पर स्थित है, जिसके चारों ओर छोटे-छोटे मेहराबदार कमरे हैं। पत्थर के फर्श और जल प्रवाह के साथ यह उद्यान शैली का पहला नमूना भी यह प्रस्तुत करता है। आपको बता दें कि हुमायूं का मकबरा मुगलकालीन वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण है।
सैलानियों का आकर्षण और मरम्मत की जरूरत: दिल्लीवासियों और देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए यह मकबरा हमेशा आकर्षण का केंद्र रहा है। शुक्रवार १५ अगस्त को हुए हादसे ने पुरानी इमारतों की सुरक्षा और मरम्मत की तत्काल आवश्यकता को फिर से उजागर कर दिया है।