वर्ष 1893 में आज ही के दिन यानी 19 सितम्बर को स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में भारत और सनातन धर्म का प्रतिनिधितव करते हुए एक शानदार और ऐतिहासिक भाषण दिया था.
स्वामी विवेकानंद का सम्बोधन ‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों!’ से शुरू हुआ था
स्वामी विवेकानंद ने 1893 में, अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद (Parliament of the World’s Religions) में सनातन धर्म का प्रतिनिधितव करते हुए एक ऐतिहासिक भाषण दिया था. अपने भाषण की शुरुआत उन्होंने ‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों!’ से सम्बोधित कर के सबको मोहित कर लिया था. इस भाषण में, स्वामी विवेकानंद ने सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति के महत्व को रेखांकित कर इसपर बल दिया था, और भारत की महान संस्कृति और आध्यात्मिकता को शानदार प्रस्तुति ढंग के साथ वैश्विक मंच पर रखा था.
शिकागो भाषण के मुख्य बिंदु
सहिष्णुता एवं स्वीकृति – भाषण में स्वामी विवेकानंद ने इस बात पर गर्व व्यक्त किया कि उनका धर्म ऐसा है जिसने दुनिया को सहिष्णुता का पाठ पढ़ते हुए सभी धर्मों का सम्मान करता है.
सार्वभौमिक सत्य – उन्होंने कहा कि सभी धर्मों के ईश्वर तक पहुँचने के तरीके और उनकी उपासना विधि अलग हो सकते हैं, लेकिन अंततः सभी का लक्ष्य एक ही सत्य को प्राप्त करना है.
भारत की वैश्विक पहचान – उनके भाषण ने वैश्विक पटल पर भारत और सनातन धर्म की छवि को मजबूत किया. उन्होंने अपने भाषण के द्वारा भारतीय संस्कृति की महानता को विश्व के सामने प्रस्तुत किया.
हठधर्मिता का अंत – उन्होंने इस धर्मसंसद सम्मेलन से यह आशा व्यक्त की कि यह हठधर्मिता, साम्प्रदायिकता और एक-दूसरे के प्रति दुर्भावना को समाप्त करने का अंतिम काल साबित होगा. सभी धर्म सद्भाव और सहिष्णुता के सन्देश को आगे बढ़ाएंगे.
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शिकागो भाषण का महत्व और प्रभाव
अमेरिका के शिकागो में स्वामी विवेकानंद द्वारा दिया गया यह भाषण, इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है. यह भाषण भारत की धार्मिक और आध्यात्मिक शक्ति के साथ-साथ ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ (दुनिया एक परिवार है) की भावना का प्रतीक बन गया, जो आज भी समाज को प्रेरित करता है.

