Richest Planet In Space: अंतरिक्ष के रहस्यों में से एक यह उल्लेखनीय तथ्य का पता चला है. असल में आकाशगंगा में कुछ ऐसे ग्रह मौजूद हैं, जहां पर हीरे (diamonds) की बारिश होती है. जी हां आपने सही सुना – वैज्ञानिकों के अनुसार, यूरेनस और नेपच्यून जैसे ग्रहों पर हीरे की वर्षा होती है.
इन ग्रहों के वायुमंडल में मीथेन की प्रचुर मात्रा होती है, जो इस अनोखी घटना का मुख्य कारण है. मीथेन में मौजूद कार्बन तत्व अत्यधिक दबाव और तापमान में विघटित होकर हीरे के क्रिस्टल में बदल जाता है.
कैसे होती है हीरे की बारिश?
यूरेनस और नेपच्यून के आंतरिक भाग पृथ्वी के दबाव से लाखों गुना अधिक वायुमंडलीय दबाव का अनुभव करते हैं, और कुछ परतों का तापमान हज़ारों डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. जब मीथेन के अणु (particle) विघटित होते हैं, तो उनके कार्बन परमाणु अलग हो जाते हैं और गुच्छों का निर्माण करते हैं. यह कार्बन धीरे-धीरे हीरे के क्रिस्टल में परिवर्तित हो जाता है.
वैज्ञानिकों के अनुसार, एक बार ये हीरे बन जाने के बाद, ग्रह का गुरुत्वाकर्षण बल उन्हें नीचे की परतों में खींच लेता है. इस प्रक्रिया को “हीरे की वर्षा” कहा जाता है. इसका अर्थ है कि इन ग्रहों के भीतर से अनगिनत छोटे हीरे लगातार नीचे गिर रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे पृथ्वी पर वर्षा की बूंदें गिरती हैं.
खतरनाक होती है ये बारिश
यह प्रक्रिया भले ही आकर्षक लगती हो, लेकिन वास्तव में यह काफी खतरनाक और दुर्गम है. यूरेनस और नेपच्यून का वायुमंडल मानव जीवन के लिए बेहद प्रतिकूल है. तापमान -200 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है, और दबाव इतना अधिक है कि पृथ्वी पर स्थित कोई भी अंतरिक्ष यान या उपकरण वहां लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकता.
क्या इंसान पहुंच पाएंगा इन हीरों तक?
इन चरम स्थितियों के कारण, इन ग्रहों पर मौजूद हीरों को मानव उपयोग के लिए एकत्रित करना असंभव है. वैज्ञानिकों का मानना है कि यूरेनस और नेपच्यून की गहराई में बने ये हीरे हमेशा के लिए वहीं रहेंगे, क्योंकि इन्हें पृथ्वी पर लाना वर्तमान में तकनीकी रूप से असंभव है.
इस प्रकार, यूरेनस और नेपच्यून पर हीरों की वर्षा उन अंतरिक्ष घटनाओं में से एक है जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बेहद आश्चर्यजनक और रहस्यमय बनी हुई है.