Diwali In Islam: भारत एक ऐसा देश है जहां सभी धर्मों और समुदायों के लोग एक साथ रहते हैं. यहां रहकर वो हर किसी के त्योहारों को बड़ी जोरो शोरों से मनाते हैं और दुनिया में मोहब्बत की एक मिसाल कायम करते हैं. जैसा की आप सभी जानते हैं कि दिवाली बेहद नजदीक है. ऐसे में देशभर में दिवाली मनाने की तैयारी जोरों शोरों से चल रही हैं. वहीं अब सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या मुस्लिम समुदाय के लोग इस दिवाली में शामिल हो सकते हैं या इसे मना सकते हैं? चलिये जान लेते हैं इसे लेकर इस्लाम क्या कहता है?
जानिये क्या कहते हैं मुस्लिम मौलाना
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुख्य मुफ़्ती मौलाना चौधरी इफ्राहिम हुसैन ने विस्तार से बताते हुए इस बात की जानकारी दी है कि इस्लाम में केवल उन्हीं कर्मों और रीति-रिवाजों को जायज़ माना जाता है जिनका आदेश अल्लाह और पैगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने दिया हो या जिनका पालन उन्होंने अपने जीवन में किया हो. जिन रीति-रिवाजों को लोगों ने बाद में अपना बना लिया, उन्हें “रीति-रिवाज” कहा जाता है और इस्लाम ऐसे रीति-रिवाजों को अपनाने से मना करता है.
क्या दिवाली मनाना जायज ?
दिवाली को लेकर मौलाना इफ्राहिम हुसैन ने साफ कहा कि दिवाली जैसे त्यौहार गैर-मुसलमानों की धार्मिक आस्थाओं और भावनाओं से जुड़े होते हैं. इसलिए, मुसलमानों के लिए ऐसे धार्मिक त्यौहारों में भाग लेना या उन्हें मनाना जायज़ नहीं है. इस्लाम में, हर धर्म के अनुयायियों को अपनी आस्थाओं और भावनाओं का पालन करने का अधिकार है, लेकिन मुसलमान केवल उन्हीं गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं जिनकी इस्लाम में अनुमति है. इतना ही नहीं इसके अलावा उन्होंने आगे कहा कि आपसी और सामाजिक सद्भावना के मामले में कोई मनाही नहीं है. सामाजिक मेलजोल, जैसे मिलना-जुलना, बातचीत करना या बस खाना-पीना, जायज़ है, बशर्ते कि वो किसी धार्मिक आयोजन या पूजा-पाठ से जुड़ा न हो.
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