हज यात्रा के दौरान क्या हुआ?
शाहिद रफ़ी के अनुसार, यह घटना 1971–72 की है, जब उनके पिता अपनी पत्नी के साथ हज पर गए थे. यह उनका दूसरा हज था, जिसे ‘अकबरी हज’ भी कहा जाता है. मोहम्मद रफ़ी बहुत धार्मिक और ईश्वर से डरने वाले इंसान थे. हज के दौरान एक मौलाना ने उनसे कहा कि संगीत से जुड़ा होना गुनाह है और अल्लाह उन्हें माफ़ नहीं करेगा. यह बात रफ़ी साहब के दिल में घर कर गई. वे डर गए और खुद को पापी मानने लगे. मुंबई लौटते ही उन्होंने तय कर लिया कि वे अब कभी नहीं गाएंगे और उन्होंने रिटायरमेंट लेने की घोषणा कर दी.
अफवाहों की दलदल में फंसे रफ़ि साहब
रफ़ी साहब ने किसी से ज्यादा बात नहीं की और यह कहते हुए लंदन चले गए कि वहां कोई उन्हें परेशान नहीं करेगा. इस दौरान कई अफ़वाहें फैलीं—कि संगीत निर्देशकों ने उनसे दूरी बना ली, या वे लंबे समय तक अवसाद में रहे. लेकिन शाहिद रफ़ी ने साफ़ किया कि सच्चाई यह थी कि उनके पिता को लगा था कि उन्होंने गुनाह किया है और अल्लाह को उनका गाना पसंद नहीं है. परिवार ने, खासकर उनके बड़े बेटे ने, उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उस समय रफ़ी साहब किसी की बात सुनने की हालत में नहीं थे.
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सही समझ और संगीत में वापसी
लंदन में ही एक दूसरे मौलाना से रफ़ी साहब की मुलाकात हुई, जिन्होंने उन्हें समझाया कि संगीत उनका ईश्वर-प्रदत्त तोहफा है और इसे छोड़ना ठीक नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि परिवार की जिम्मेदारी निभाना जरूरी है. इस समझाइश से रफ़ी साहब को राहत मिली. बाद में जब वे मुंबई लौटे, तो संगीतकार नौशाद ने भी उन्हें यही बात समझाई. तब रफ़ी साहब ने फिर से गाना शुरू किया. इस तरह, गलतफहमी और डर के कारण लिया गया उनका फैसला बदला और भारतीय संगीत को एक बार फिर उनकी मधुर आवाज़ मिली.
मौत से कुछ घंटे पहले गाया था आखिरी गाना
मोहम्मद रफ़ी का निधन 31 जुलाई, 1980 को हुआ था. संगीत और गाने के प्रति उनका प्यार इतना गहरा था कि उन्होंने अपनी मौत से कुछ घंटे पहले एक गाना रिकॉर्ड किया था. उन्होंने गाना फ़िल्म ‘आस पास’ के लिए था, जिसका संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने दिया था. 31 जुलाई, 1980 को ही रफ़ी साहब की सुरीली आवाज़ आखिरी बार स्टूडियो में गूंजी थी. अपनी मौत से कुछ घंटे पहले, उन्होंने फ़िल्म ‘आस पास’ के लिए “शाम फिर क्यों उदास है दोस्त, तू कहीं आस पास है दोस्त” गाना रिकॉर्ड करना पूरा किया था.