कभी बिहार की सियासत में ‘सुशासन बाबू’ के नाम से पहचाने जाने वाले नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू का दबदबा इतना मजबूत था कि विरोधी भी उनकी पकड़ को मानते थे. लेकिन वक्त के साथ बिहार की राजनीति ने करवट बदली और वही जदयू, जो कभी जीत की गारंटी मानी जाती थी, अब सीटों और वोट शेयर दोनों में फिसलती नज़र आ रही है. 2015 के सुनहरे दौर से लेकर 2020 के फीके प्रदर्शन तक, आंकड़े बताते हैं कि नीतीश कुमार की सियासी पकड़ अब पहले जैसी नहीं रही और नई सीट बंटवारे की घोषणा ने इस बदलते समीकरण को और साफ कर दिया है.
बिहार विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के साथ ही सीट बंटवारे का मामला स्पष्ट हो गया है. अभी तक इस बात को लेकर असमंजस की स्थिति थी कि भाजपा और जदयू के साथ चिराग पासवान और जीतन राम मांझी कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. अब इसका भी ऐलान हो गया है. एनडीए के अनुसार, भाजपा और जदयू 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. चिराग पासवान 29 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, जबकि उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी ने छह-छह सीटें हासिल की हैं.
पिछले चुनाव में किसने कितनी सीटें जीती थीं
पिछले विधानसभा चुनाव में जनता दल (यूनाइटेड) ने 115 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से केवल 43 पर जीत हासिल की थी. भारतीय जनता पार्टी ने 110 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से केवल 74 पर जीत हासिल की थी. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए से अलग होकर 135 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिनमें से केवल एक पर जीत हासिल कर पाई थी. हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा ने पिछली बार एनडीए का हिस्सा रहते हुए सात सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से चार पर जीत हासिल की थी. एनडीए से अलग होने के बाद, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी ने पिछली बार एनडीए के खिलाफ 99 उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन खाता भी नहीं खोल पाई थी.
Bihar Chunav 2025: LJPR, HAM और RLD को जाने बिहार में कौन-कौन सी सीटें मिली?
2015 विधानसभा चुनाव की कहानी
मनी कंट्रोल के एक विश्लेषण के अनुसार, 2015 में भाजपा ने 157 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उसने इनमें से लगभग 34% सीटें जीतीं, जिसके परिणामस्वरूप कमज़ोर एनडीए को कुल मिलाकर हार का सामना करना पड़ा. 2015 में, महागठबंधन के हिस्से के रूप में, जेडीयू ने 101 सीटों पर चुनाव लड़कर 71 सीटें जीतीं, जो 70% जीत दर है. गठबंधन ने 243 विधानसभा सीटों में से 178 सीटें जीतीं.
बाद में वह भाजपा में वापस आ गए और 2020 का चुनाव साथ मिलकर लड़ा. जिन निर्वाचन क्षेत्रों में उसने चुनाव लड़ा, वहाँ जेडीयू का वोट शेयर 2015 में 41% से गिरकर 2020 में 33% से नीचे आ गया. स्ट्राइक रेट, यानी जीती गई सीटें, 38% से नीचे गिर गईं, जो 2015 के प्रदर्शन का बमुश्किल आधा है.
‘ओवैसी की पार्टी को वोट नहीं दिया तो…’, AIMIM नेता की बीवी को धमकी, जानिए क्या है बवाल मामला!