छठ पूजा भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है, जो विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है.यह पर्व सूर्य देव और छठी मइया को समर्पित है.इस व्रत में महिलाएं (कभी-कभी पुरुष भी) 36 घंटे का निर्जला उपवास रखती हैं और सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं.इस पूजा की एक विशेषता है कि महिलाएं डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देते समय पानी में खड़ी रहती हैं. इसके पीछे धार्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी हैं.
छठ पूजा का धार्मिक कारण
छठ पूजा में सूर्य देव को ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने से सूर्य की किरणें जल के माध्यम से भक्त तक पहुंचती हैं, जिससे मन और शरीर दोनों शुद्ध होते हैं. जल में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देना भक्ति, समर्पण और आत्मसंयम का प्रतीक है. यह दर्शाता है कि व्रती अपने शरीर और इंद्रियों पर नियंत्रण रखकर केवल भक्ति में लीन है. सूर्य देव को जल अर्पित करने से जीवन में प्रकाश, सकारात्मकता और शक्ति आती है.यह भी कहा जाता है कि छठी मइया (उषा, सूर्य की पत्नी) अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं, इसलिए महिलाएं पूरे श्रद्धाभाव से जल में खड़ी होकर प्रार्थना करती हैं.
छठ पूजा का वैज्ञानिक कारण
वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह परंपरा अत्यंत लाभकारी है.जब व्यक्ति सूर्य की प्रथम या अंतिम किरणों में जल में खड़ा होता है, तो उसे ‘सन बाथ’ जैसा प्राकृतिक लाभ मिलता है.जल सूर्य की किरणों को परावर्तित करता है, जिससे शरीर को विटामिन D मिलता है और रक्त संचार बेहतर होता है.इसके अलावा, ठंडे जल में खड़े रहने से शरीर में ऊर्जा का संतुलन बना रहता है, मन शांत होता है और मानसिक एकाग्रता बढ़ती है.
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साथ ही, यह एक तरह का मेडिटेशन भी है — जब व्रती घंटों तक ध्यानमग्न होकर जल में खड़ा रहता है, तो उसके मन में स्थिरता और आत्मशक्ति का विकास होता है.
छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति और मानव के बीच सामंजस्य का अद्भुत उदाहरण है.जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देना भक्ति, अनुशासन, और विज्ञान, तीनों का संगम है.यही कारण है कि आज भी लाखों महिलाएँ इस परंपरा को पूरी आस्था और श्रद्धा से निभाती हैं.