Outsourcing Currency Countries: मुद्रा मुद्रण किसी भी देश के लिए केवल एक नियमित कार्य नहीं, बल्कि एक रणनीतिक निर्णय है. यह किसी देश की आर्थिक स्थिरता, सुरक्षा और मुद्रास्फीति नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. अधिकांश विकसित देशों के पास अपनी मुद्रा मुद्रित करने के लिए संसाधन और तकनीक मौजूद है, लेकिन कुछ देश अपनी मुद्रा स्वयं मुद्रित (बनाने)करने में असमर्थ हैं और विदेशी देशों पर निर्भर हैं.
अगर हम भारत की बात करें तो यहां पर अपनी सुरक्षा और आर्थिक नीतियों को बनाए रखने के लिए पूरी तरह से घरेलू स्तर पर मुद्रा मुद्रित की जाती है और किसी भी तरह से दूसरे देशों से इसकी आउटसोर्सिंग नहीं की जाती.
चीन पर निर्भर हैं ये देश
नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे कई एशियाई देश अपनी मुद्रा मुद्रण के लिए चीन पर निर्भर हैं. चीन की अत्याधुनिक मुद्रण मशीनरी, उच्च सुरक्षा उपाय और विशाल उत्पादन क्षमता इसे एक विश्वसनीय मुद्रा उत्पादक बनाती है. यह न केवल अपनी मुद्रा, युआन, मुद्रित करता है, बल्कि आवश्यकतानुसार पड़ोसी देशों के लिए सुरक्षित रूप से बैंकनोट भी तैयार करता है.
अफ्रीकी देशों का भी यहीं हाल
अफ्रीका के कई देश भी विदेशी मुद्रण पर निर्भर हैं. महाद्वीप के 54 देशों के लगभग दो-तिहाई बैंकनोट अन्य देशों द्वारा उत्पादित किए जाते हैं. नाइजीरिया, केन्या, जाम्बिया और तंजानिया जैसी अर्थव्यवस्थाएं यूनाइटेड किंगडम और जर्मनी में अपनी मुद्रा मुद्रित करती हैं.
आउटसोर्सिंग क्यों कर रहे हैं ये देश?
विदेशी कंपनियों को मुद्रा मुद्रण का काम आउटसोर्स करने का मुख्य कारण यह है कि मुद्रा उत्पादन एक महंगी और तकनीकी रूप से जटिल प्रक्रिया है. इसके लिए विशेष कागज़, उच्च-गुणवत्ता वाली स्याही, सुरक्षा धागे, होलोग्राम और अन्य सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होती है. इन सुविधाओं की स्थापना और रखरखाव छोटे और विकासशील देशों के लिए महंगा और कठिन हो सकता है. इसलिए, वे उच्च-गुणवत्ता वाले बैंकनोटों का आउटसोर्सिंग करना पसंद करते हैं.
हालांकि, इस प्रक्रिया में सुरक्षा जोखिम भी होते हैं. जब कोई विदेशी संस्था किसी देश के बैंकनोट बनाती है, तो उसे महत्वपूर्ण सुरक्षा विवरणों तक पहुंच मिल जाती है. यदि उचित सावधानी नहीं बरती जाती है, तो जालसाजी का जोखिम बढ़ जाता है. इसलिए, ऐसे काम के लिए केवल विश्वसनीय भागीदारों का चयन करना आवश्यक है.
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