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कहीं आत्माओं को बुलाते हैं तो कहीं जलते हैं मक्खन के दिए! देश के इन हिस्सों में दिवाली पर निभाई जाती हैं ये रस्में

Diwali Celebration: इस साल दिवाली सोमवार, 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी. देश के अलग-अलग हिस्सों में इस त्योहार को अलग-अलग और अनोखे अंदाज़ में मनाया जाता है.

By: Heena Khan | Published: October 18, 2025 1:40:36 PM IST



Diwali Rituals: दिवाली का त्यौहार एक ऐसा त्यौहार है जिसे देश के हर एक कोने में मनाया जाता है. वहीं इन दिनों त्योहारों का ही मौसम चल रहा है. हर तरफ रोशनी और सजावट दिखाई दे रही है. इस साल दिवाली सोमवार, 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी. देश के अलग-अलग हिस्सों में इस त्योहार को अलग-अलग और अनोखे अंदाज़ में मनाया जाता है. कहीं लोग अपने घरों के बाहर हाथ में मशाल लेकर खड़े होते हैं, तो कहीं कुत्तों और कौओं की पूजा की जाती है. कई जगह अजब गजब रस्मों से दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है. चलिए जान लेते हैं कहां कैसे दिवाली मनाई जाती है.

गोवा में सजता है अखाड़ा 

तटीय राज्य गोवा में नरक चतुर्दशी दिवाली के समान ही धूमधाम से मनाई जाती है. जहाँ देश के अन्य हिस्सों में दिवाली पर भगवान राम की पूजा की जाती है, वहीं गोवा में नरक चतुर्दशी मुख्य रूप से भगवान कृष्ण को समर्पित होती है. जिस प्रकार दशहरे पर कई राज्यों में रावण का पुतला जलाया जाता है, उसी प्रकार गोवा में नरक चतुर्दशी पर राक्षस नरकासुर का पुतला जलाया जाता है.

शमशान में की जाती है पूजा 

पश्चिम बंगाल में, नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, उसके बाद दिवाली पर देवी काली की पूजा की जाती है. यहाँ, कोलकाता में कालीघाट मंदिर के पास स्थित केवड़ातला श्मशान में, जलती हुई चिताओं के बीच देवी की पूजा की जाती है. जब तक कोई शव श्मशान में नहीं पहुँच जाता, तब तक देवी को कोई भोग नहीं लगाया जाता. पूजा के दौरान दाह संस्कार के लिए आई चिता को भी पंडाल में रखा जाता है. यह 150 साल पुरानी परंपरा है जिसकी शुरुआत 1870 में हुई थी.

यहां जलते हैं मक्खन के दिए 

अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र तवांग में दिवाली एक अनोखे अंदाज़ में मनाई जाती है. जहाँ अन्य जगहों पर दिवाली रोशनी और पटाखों के साथ मनाई जाती है, वहीं तवांग में दिवाली एक शांतिपूर्ण प्रार्थना का उत्सव है. यहाँ रहने वाले मोनपा जनजाति और बौद्ध अनुयायी दिवाली पर अपने घरों और मठों में मक्खन के दीये जलाते हैं. यहाँ पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए रोशनी की जाती है और पटाखों का भी इसी परंपरा के अनुसार इस्तेमाल किया जाता है. इन विशेष मक्खन के दीयों को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है.

आत्माओं को बुलाते हैं लोग 

ओडिशा में दिवाली के दौरान एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है. इस परंपरा को कौनरिया काठी और बड़बदुआ डाका कहा जाता है. इस परंपरा के अनुसार, दिवाली की रात लोग अपने घरों के बाहर जलती हुई मशालें लेकर खड़े होते हैं और अपने पूर्वजों को याद करते हुए एक विशेष मंत्र का जाप करते हैं. ऐसा अपने पूर्वजों को घर लौटने का निमंत्रण देने के लिए किया जाता है ताकि उनकी आत्माएँ वापससकें और अपने लोगों को आशीर्वाद दे सकें.

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