Ada Lovelace Day: हर साल अक्टूबर के दूसरे मंगलवार को पूरी दुनिया में आडा लवलेस डे (Ada Lovelace Day) मनाया जाता है. यह दिन उस महिला के नाम है जिसे आज दुनिया की पहली कंप्यूटर प्रोग्रामर माना जाता है. आडा लवलेस दिन का उद्देश्य विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) के क्षेत्र में महिलाओं के योगदान को याद करना और उन्हें सम्मान देना है.
कौन थीं आडा लवलेस?
एडा लवलेस का जन्म 10 दिसंबर 1815 को लंदन में हुआ था. उनका पूरा नाम ऑगस्टा एडा बायरन था. वह प्रसिद्ध कवि लॉर्ड बायरन की पुत्री थीं लेकिन उनकी मां ऐनी इसाबेला मिलबैंक ने उन्हें गणित और विज्ञान की शिक्षा देने पर ज़ोर दिया ताकि वे अपने पिता की आदतों से दूर रह सकें. इससे एडा की गणित और तर्कशास्त्र में गहरी रुचि पैदा हुई. उनके जन्म के कुछ समय बाद ही उनके माता-पिता अलग हो गए और जब वह आठ साल की थीं तब उनके पिता का निधन हो गया. हालांकि एडा का अपने पिता के प्रति स्नेह गहरा रहा और उन्होंने अपने बेटों का नाम उनके नाम पर रखा.
गणित की एक होनहार छात्रा
एडा लवलेस गणित की एक होनहार छात्रा थीं और इसी वजह से उनका कई वैज्ञानिकों से परिचय हुआ. उन्होंने विश्लेषणात्मक इंजन के आविष्कारक चार्ल्स बैबेज के साथ मिलकर काम किया. यह मशीन आज हम जिस कंप्यूटर का इस्तेमाल करते है, उसका एक प्रारंभिक रूप थी लेकिन इसकी क्षमताएं बहुत सीमित थीं. उस समय, कंप्यूटर केवल कैलकुलेटर के रूप में काम करते थे.
दुनिया का पहला कंप्यूटर प्रोग्राम
एडा ने इस मशीन के लिए एक एल्गोरिथम विकसित किया जिसे दुनिया का पहला कंप्यूटर प्रोग्राम माना जाता है। उन्होंने साबित किया कि कंप्यूटर केवल संख्याओं की गणना करने वाली मशीनें नहीं हैं, बल्कि इनका इस्तेमाल किसी भी तरह के डेटा को प्रोसेस करने के लिए किया जा सकता है.
सच हुई भविष्यवाणी
अपने नोट्स में एडा ने यह भी भविष्यवाणी की थी कि भविष्य में कंप्यूटर संगीत रचना, ग्राफ़िक्स डिज़ाइन और वैज्ञानिक अनुसंधान में सहायता कर सकेंगे. आज की डिजिटल दुनिया में उनकी यह सोच सच साबित हुई है. कुछ लोगों का मानना है कि चार्ल्स बैबेज ने पहला कंप्यूटर प्रोग्राम बनाया था लेकिन उनका ध्यान गणित पर ज़्यादा था, जबकि एडा कंप्यूटर की क्षमताओं को उससे कहीं आगे देखती थीं. इसीलिए प्रोग्रामिंग लैग्वेज “एडा” का नाम इसी वैज्ञानिक के नाम पर रखा गया है.
आडा लवलेस आज भी लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा का प्रतीक हैं। उन्होंने यह साबित किया कि तकनीक की दुनिया सिर्फ पुरुषों तक सीमित नहीं, बल्कि महिलाएं भी इसमें समान रूप से प्रतिभाशाली और इनोवेटिव हो सकती हैं.