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Karwa Chauth 2025: पहली बार किसने रखा था करवा चौथ का व्रत, क्यों मनाया जाता है ये पर्व

Karwa Chauth Vrat 2025: करवा चौथ का व्रत भारतीय परंपरा में सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक माना जाता है. यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है और इसका मुख्य उद्देश्य पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और वैवाहिक जीवन की सुख-शांति की कामना करना होता है. इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले सर्गी ग्रहण करती हैं और फिर पूरे दिन निर्जला उपवास रखकर शाम को करवा माता, भगवान शिव, माता पार्वती और चंद्रमा की पूजा करती हैं। चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पति के हाथों से पानी पीकर व्रत का समापन किया जाता है.

By: Shivi Bajpai | Published: October 3, 2025 3:29:43 PM IST



Karwa Chauth 2025: करवा चौथ का व्रत भारतीय संस्कृति और परंपराओं में विशेष स्थान रखता है. यह व्रत हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है. खासतौर पर सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और दांपत्य जीवन की सुख-शांति के लिए यह उपवास करती हैं. इस दिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले सर्गी ग्रहण करती हैं और फिर दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं. शाम को पूजा-पाठ के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर पति के हाथों से पानी पीकर व्रत का समापन करती हैं. मान्यता है कि इस उपवास से पति को दीर्घायु और दांपत्य जीवन में सौभाग्य प्राप्त होता है.

करवा चौथ का महत्व

करवा चौथ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह पति-पत्नी के बीच प्रेम, समर्पण और विश्वास का प्रतीक भी है. इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपनी श्रद्धा और निष्ठा प्रकट करती हैं. परंपरा यह भी कहती है कि करवा चौथ का व्रत सिर्फ पति की लंबी आयु के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार की सुख-समृद्धि और रिश्तों में मजबूती के लिए भी लाभकारी होता है. यही कारण है कि इसे भारत के कई राज्यों—जैसे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश—में बड़े उत्साह से मनाया जाता है.

किसने किया था करवा चौथ का व्रत पहली बार?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, करवा चौथ व्रत की शुरुआत देवी पार्वती ने की थी. कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव की लंबी आयु और उनके साथ अटूट वैवाहिक संबंध की कामना से इस व्रत का पालन किया था. तभी से यह परंपरा शुरू हुई और सुहागिन महिलाएं अपने पति के कल्याण और दीर्घायु के लिए यह व्रत करती आ रही हैं.

इसके अलावा, लोककथाओं में वीरावती की कथा भी प्रसिद्ध है. वीरावती सात भाइयों की इकलौती बहन थी. उसने पहला करवा चौथ व्रत रखा, लेकिन भूख-प्यास से व्याकुल होकर अर्धचेतन अवस्था में आ गई. भाइयों ने बहन की स्थिति देखकर छल से दीपक और छलनी के सहारे चंद्रमा का आभास करवा दिया. वीरावती ने व्रत तोड़ दिया, जिसके चलते उसके पति की मृत्यु हो गई. बाद में देवी पार्वती की कृपा से उसने पुनः कठोर तप कर पति को पुनर्जीवित किया. तभी से यह कथा करवा चौथ की महत्ता और कठोरता को दर्शाती है.

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करवा चौथ का व्रत केवल धार्मिक मान्यता ही नहीं बल्कि भारतीय समाज में पति-पत्नी के अटूट रिश्ते का प्रतीक है. चाहे यह परंपरा देवी पार्वती से जुड़ी हो या वीरावती की कथा से, दोनों ही कथाएं यह संदेश देती हैं कि समर्पण और आस्था से रिश्तों में मजबूती आती है. यही कारण है कि आज भी यह व्रत आधुनिक युग में समान श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है.

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