Navratri 4th day: इस बार शारदीय नवरात्रि का त्योहार 22 सितंबर से शुरू हो गया है. पर इस साल तृतीया तिथि दो दिन पड़ने के कारण 26 सितंबर, शुक्रवार के दिन चतुर्थी तिथि के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन मां कूष्मांडा की पूजा की जाएगी.
शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन देवी दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कूष्मांडा को समर्पित होता है. इन्हें आदिशक्ति का वह रूप माना जाता है जिन्होंने अपनी दिव्य मुस्कान से सृष्टि की रचना की थी. कूष्मांडा शब्द का अर्थ है – ‘कू’ यानी थोड़ा, ‘उष्मा’ यानी ऊर्जा और ‘अंड’ यानी ब्रह्मांड. इस प्रकार मां कूष्मांडा को ब्रह्मांड की जननी कहा जाता है. भक्त मानते हैं कि मां की पूजा से जीवन में ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
मां कूष्मांडा का स्वरूप
मां कूष्मांडा आठ भुजाओं वाली देवी हैं. इनके हाथों में कमल, गदा, चक्र, धनुष, बाण, अमृतकलश और जपमाला सुशोभित रहते हैं. मां सिंह पर सवार होती हैं और उनका तेज पूरे ब्रह्मांड को आलोकित करता है.
पूजा का महत्व
नवरात्रि की चतुर्थी तिथि पर मां कूष्मांडा की पूजा करने से मानसिक और शारीरिक रोग दूर होते हैं. जिन घरों में सकारात्मक ऊर्जा की कमी रहती है, वहां मां की आराधना करने से सुख-शांति का वातावरण बनता है. कहा जाता है कि मां कूष्मांडा साधक को आयु, यश और बल प्रदान करती हैं.
पूजा विधि
प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें.
मां कूष्मांडा की प्रतिमा या चित्र को फूल, रोली, अक्षत और सिंदूर से सजाएं.
दीपक और धूप जलाकर विधिवत आराधना करें.
मां को मालपुआ का भोग विशेष रूप से प्रिय है, अतः इस दिन मालपुए का प्रसाद चढ़ाया जाता है.
अंत में भक्त मां की आरती करते हैं और परिवार के कल्याण की कामना करते हैं.
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मां कूष्मांडा की आरती
आरती मां कूष्मांडा की बड़े भाव से गाई जाती है. इस आरती में मां के दिव्य स्वरूप का वर्णन और उनके चरणों में श्रद्धा अर्पित की जाती है. भक्तजन दीप जलाकर और घंटियों की ध्वनि के बीच यह आरती गाते हैं. माना जाता है कि आरती से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और भक्त के जीवन से सभी विघ्न दूर हो जाते हैं.
कूष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली। शाकंबरी माँ भोली भाली॥लाखों नाम निराले तेरे । भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे। सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो मां संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥