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Vastu Shashtra: घर का मंदिर ईशान कोण में बनवाना क्यों होता है शुभ, जानें इसका महत्व

Temple Direction: मंदिर एक पवित्र स्थान होता है. घर पर मंदिर बनवाते समय विशेष रूप से दिशा का ध्यान रखना चाहिए. इसके लिए सबसे सर्वश्रेष्ठ दिशा ईशान कोण (North east) होती है. तो आइए जानते हैं कि इस दिशा में मंदिर बनाने का क्या महत्व है.

By: Shivi Bajpai | Last Updated: September 20, 2025 3:59:48 PM IST



Vastu Shastra Tips: भारतीय संस्कृति और वास्तुशास्त्र में घर के मंदिर को विशेष महत्व दिया गया है. यह केवल पूजा-पाठ का स्थान ही नहीं, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा, शांति और आध्यात्मिक संतुलन का केंद्र माना जाता है. मंदिर घर में जहां स्थित होता है, उसका प्रभाव परिवार के सुख-समृद्धि और मानसिक शांति पर गहरा पड़ता है. यही कारण है कि वास्तुशास्त्र में घर के मंदिर के लिए ईशान कोण, यानी उत्तर-पूर्व दिशा को सर्वश्रेष्ठ माना गया है.

ईशान कोण का महत्व

ईशान कोण जल और देवताओं की दिशा मानी जाती है. यह वह स्थान है जहाँ से सूर्य की पहली किरण घर में प्रवेश करती है. प्राचीन शास्त्रों के अनुसार, यह किरणें न केवल वातावरण को शुद्ध करती हैं, बल्कि मानसिक शांति और ऊर्जा का संचार भी करती हैं. यही कारण है कि मंदिर को इस दिशा में रखने से घर का वातावरण सकारात्मक बना रहता है.

सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह

उत्तर-पूर्व दिशा को पवित्र और ऊर्जावान माना गया है. जब मंदिर इसी दिशा में स्थापित होता है, तो घर के हर सदस्य को आध्यात्मिक बल और मानसिक स्थिरता मिलती है. पूजा और ध्यान की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है और परिवार के बीच आपसी सामंजस्य बेहतर होता है.

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स्वास्थ्य और समृद्धि से जुड़ाव

वास्तु के अनुसार, ईशान कोण में मंदिर होने से मानसिक तनाव कम होता है, नींद बेहतर होती है और जीवन में आत्मविश्वास बढ़ता है. कई वास्तु विशेषज्ञ मानते हैं कि इस दिशा में पूजा स्थल होने से घर में समृद्धि और सौभाग्य का आगमन होता है. व्यापार, नौकरी या शिक्षा – हर क्षेत्र में सफलता के अवसर अधिक मिलते हैं.

क्या न करें?

घर का मंदिर कभी भी सीढ़ियों के नीचे, शौचालय के पास या दक्षिण-पश्चिम दिशा में नहीं बनाना चाहिए. इससे नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और जीवन में अवरोध उत्पन्न होते हैं. मंदिर को हमेशा स्वच्छ, सुव्यवस्थित और शांत वातावरण में रखना चाहिए.

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