Jitiya Vrat Significance: श्रद्धा, प्रेम और मातृभक्ति का प्रतीक जितिया व्रत (Jivitputrika Vrat) बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में हर माता की भक्ति का पर्व है। इस व्रत के दौरान महिलाएं उपवास कर अपनी संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सौभाग्य की कामना करती हैं। यह पर्व ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद महत्व रखता है।
संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए किया जाने वाला जितिया व्रत भारतीय संस्कृति का एक अद्भुत उदाहरण है। यह व्रत सिर्फ धार्मिक आस्था ही नहीं, बल्कि माँ की ममता और त्याग का भी प्रतीक है। इसमें महिलाएं कठोर निर्जला उपवास रखकर अपनी संतान की सुरक्षा और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं। यही कारण है कि यह पर्व मातृत्व और परिवार की मजबूती का एक पवित्र उत्सव माना जाता है।
दिन-प्रतिदिन की रूपरेखा
ओठगन पूजा और नहाय-खाय (13 सितंबर 2025):
व्रत से एक दिन पहले माताएं शाम तक ओठगन पूजा करती हैं, जिसके बाद शुद्ध और विशेष भोजन ग्रहण करती हैं। इस दिन की विधि से शरीर और मन दोनों की शुद्धि होती है।
निर्जला उपवास (14 सितंबर 2025):
14 सितंबर को सूर्योदय के साथ व्रती महिलाएं निर्जला उपवास (बिना जल के) रखती हैं, जो कथा-नारायण, पौराणिक पूजा और तप का प्रमुख हिस्सा होता है।
• अष्टमी तिथि की अवधि:
सुबह 5:04 बजे से अगले दिन 3:06 बजे तक
पारण (15 सितंबर 2025 सुबह):
अगले दिन यानि 15 सितंबर को सुबह 6:10 से 8:32 बजे तक पारण (व्रत समाप्ति) विधि से पानी और भोजन ग्रहण किया जाता है।
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पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व
• जन्म कथा: यह व्रत महाभारत काल की कथा पर आधारित है, जहां श्री कृष्ण ने अभिमन्यु के गर्भ में मृत बच्चे को जीवित किया था और नाम रखा “जीवित्पुत्रिका।” तब से यह व्रत बच्चों की रक्षा और दीर्घायु के लिए मनाया जाता है।
• भौगोलिक महत्व: मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में श्रद्धा से मनाया जाता है।