रायपुर से जगजीत सिंह की रिपोर्ट: छत्तीसगढ़ की राजनीति में मंत्रिमंडल विस्तार अब बीरबल की खिचड़ी बन बन चुकी है। बीते बीस महीनों से सिर्फ़ खबरें पकाई जा रही हैं, परोसने के नाम पर प्लेट अब भी खाली है। नेता जी बार-बार सूट सिलवा रहे हैं लेकिन शपथग्रहण की तारीख़ अब तक दर्ज नहीं हो पाई है।बार बार मंत्रिमंडल बिस्तार को लेकर के कार्यक्रम तो हो रहे हैं लेकिन हमेशा की तरह इसको किसी कारणवश टाल दिया जा रहा है।
क्यों हो रहा है मंत्रिमंडल का विस्तार?
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तंज कसते हुए कहा—“मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा सुन-सुन कर अब तो कान पक गए हैं। भाजपा नेताओं ने इतने बार सूट सिलवा लिए कि अब तो अलमारी ही छोटी पड़ जाए।”छत्तीसगढ़ के मंत्रिमंडल में कुल 11 मंत्री हैं और तीन नए मंत्रियों को मंत्रिमंडल में शामिल किया जायेगा। छत्तीसगढ़ राज्य में पहली बार 14 सदस्यों का मन्त्रिमण्डल बन सकता है फिलहाल यहां मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को मिलाकर 11 मंत्री हैं और तीन नए चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल करने पर कुल 14 मंत्री हो सकते हैं। नियमों के अनुसार विधायकों की कुल संख्या के 15 फीसदी नेताओं को ही मंत्री बनाया जा सकता है।
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सुनील सोनी विधायक चुने गए
बृजमोहन अग्रवाल के सांसद बनने के बाद उनकी जगह सुनील सोनी विधायक चुने जा चुके हैं। नवंबर 2024 में हुए उपचुनाव में उन्होंने बड़े अंतर से जीत हासिल की थी। इसके बाद से बृजमोहन अग्रवाल की जगह किसी को मंत्री नहीं बनाया गया है। स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा, संसदीय कार्य, धार्मिक न्यास और धर्मस्व, पर्यटन एवं संस्कृति विभाग उनके जिम्मे था। वहीं, दूसरे मंत्री का पद पहले से ही खाली रखा गया था। अच्छा प्रदर्शन करने वाले विधायक को यह पद दिया जाना था। वहीं, तीसरा पद अतिरिक्त रूप से हरियाणा की तर्ज पर दिया जा सकता है।
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इन विधायकों को मिल सकता है मौका
मंत्रिमंडल के विस्तार में क्षेत्रीय और जातिगत संतुलन का ध्यान रखा जा सकता है। ऐसे में बनिया फैक्टर को अहमियत दी जा सकती है। फिलहाल मंत्री बनने की रेस में गजेंद्र यादव, खुशवंत साहेब, अमर अग्रवाल, राजेश अग्रवाल, पुरंदर मिश्रा और राजेश मूणत का नाम शामिल है। इनमें से तीन नेताओं को 20 अगस्त तक मंत्री बनाया जा सकता है।
वहीं सत्ता पक्ष भी कहां चुप रहने वाला था। मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने पलटवार किया—“ये तो वही बात हो गई जैसे बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना। ढाई-ढाई साल वाला फार्मूला कांग्रेस का था। उस समय टीएस सिंहदेव भी सूट सिलवाकर बैठे थे। भूपेश बघेल को तब ही चिंता करनी चाहिए थी।”
राजनीति के इस आगे-पीछे के खेल में जनता बस यही सवाल पूछ रही है कि आखिर कब खुलेगा “मंत्री मंडल का कमंडल”? या फिर ये खिचड़ी ऐसे ही धीमी आंच पर पकती रहेगी।