जनमाष्टमी के मौके पर जब भी श्रीकृष्ण की झांकियां और सजावट होती है, सबसे ज्यादा ध्यान उनके मुकुट पर लगे मोरपंख पर जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान कृष्ण ने मोरपंख ही क्यों चुना? इसके पीछे कई रोचक कारण और कहानियां हैं, जो आज हम आपको बताएंगे।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब कृष्ण बांसुरी बजाते थे तो मोर आनंद में झूमकर नाचने लगते थे। उस समय मोर राज ने खुशी से अपना पंख कृष्ण को भेंट कर दिया। कृष्ण ने उस पंख को अपने मुकुट पर सजाया और तब से यह उनका पहचान चिन्ह बन गया। वहीं, धार्मिक मान्यता है कि मोर पंख पवित्रता और सादगी का प्रतीक है। कहा जाता है कि मोर कभी कामवासना से ग्रस्त नहीं होता, इसलिए इसे शुद्ध जीव माना गया है। यही कारण है कि कृष्ण ने इसे अपने मुकुट में धारण किया।
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मोरपंख के अलग-अलग रंग
इसके अलावा, मोरपंख के अलग-अलग रंग जीवन और प्रकृति के रंगों को दर्शाते हैं। नीला, हरा और सुनहरा रंग मिलकर दिखाते हैं कि कृष्ण ही सम्पूर्ण सृष्टि का रूप हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि मोर पंख माया यानी भ्रम का भी प्रतीक है, क्योंकि इसकी रंगत रोशनी के हिसाब से बदलती रहती है, जैसे संसार की माया।
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जीवन में पवित्रता
जनमाष्टमी पर श्रीकृष्ण का मोरपंख हमें यह सिखाता है कि जीवन में पवित्रता, सादगी और सभी रंगों को अपनाना जरूरी है। यही वजह है कि यह छोटा-सा पंख आज भी कृष्ण की सबसे बड़ी पहचान माना जाता है।
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