Independence Day 2025: 15 अगस्त के अवसर पर हम हमेशा तिरंगे और देशभक्ति की बाहरी झलक देखते हैं। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है,क्या स्वतंत्रता सिर्फ विदेशी शासन से मुक्ति भर है? भगवद् गीता हमें बताती है कि सच्ची आज़ादी तो भीतर होती है। इस साल पूरा देश 79वां स्वतंत्रता दिवस का जश्न मना रहा है।
गांव में एक युवक, अंकित, हमेशा से देशभक्ति की प्रबल भावना रखता था। वह स्वतंत्रता दिवस पर परेड और झंडारोहण में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता, लेकिन भीतर कुछ अधूरापन महसूस करता थाएक दिन उसकी मुलाकात गांव के बुड्ढे पंडित जी से हुई, जो गीता के गहरे अर्थ बताते थे। पंडित जी ने कहा– बाहरी बंधनों से मुक्ति मिलने पर ही आज़ादी नहीं मिल जाती है स्वतंत्रता तो मन को लालच, क्रोध और संदेह जैसे ‘अंदरूनी बंदिशों’ से छुड़ाने में है।
गीता का श्लोक
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…”
जिसका मतलब तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने पर है, फल पर नहीं। यह मन को फल की चिंता से मुक्त कर देता है, और यही है मानसिक आज़ादी।
दूसरा श्लोक
“रागद्वेषवियुक्तैस्तु… आत्मवश्यैरविदिश्यते।”
यह बताता है कि जब हम प्रेम और द्वेष दोनों से ऊपर उठ जाते हैं, संयम से इंद्रियों को नियंत्रण में रखते हैं, तो शांति और असली आज़ादी मिलती है।
अंकित ने जाना कि वास्तविक आज़ादी केवल अधिकारों का उपभोग नहीं, बल्कि दूसरों पर निर्भरता, अहंकार, भय और लालच से ऊपर उठना है और अपने कर्तव्य को निष्ठा और श्रद्धा से पूरा करना ही जीवन का सार है।
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