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Madras High Court: ‘हिंदू भगवानों का अपमान करना अभिव्यक्ति की आजादी नहीं’, तमिलनाडु पुलिस को कोर्ट की फटकार! जानें क्यों कह दी इतनी बड़ी बात?

Madras High Court: टीवी के परदे  या फिर सोशल मीडिया पर अक्सर हिंदू-देवताओं को भद्दे रूप में दिखाया जाता है। ऐसे ही मामलों पर संज्ञान लेते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी को भी हिंदू देवी-देवताओं का अपमानजनक चित्रण करने का अधिकार नहीं है।

By: Deepak Vikal | Published: August 8, 2025 6:19:36 PM IST



Madras High Court: टीवी के परदे  या फिर सोशल मीडिया पर अक्सर हिंदू-देवताओं को भद्दे रूप में दिखाया जाता है। ऐसे ही मामलों पर संज्ञान लेते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी को भी हिंदू देवी-देवताओं का अपमानजनक चित्रण करने का अधिकार नहीं है। अदालत ने यह टिप्पणी तमिलनाडु पुलिस को फटकार लगाते हुए की है। यह मामला एक फेसबुक पोस्ट से जुड़ा है, जिसमें भगवान कृष्ण की एक तस्वीर अपमानजनक भाषा वाले कैप्शन के साथ पोस्ट की गई थी और पुलिस ने न तो इसे पोस्ट करने वाले के खिलाफ कोई कार्रवाई की और न ही मामला बंद किया।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति के मुरली शंकर की पीठ ने 4 अगस्त को मामले की सुनवाई करते हुए तमिलनाडु पुलिस को दोबारा जाँच करने और तीन महीने के भीतर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। अदालत शिकायतकर्ता पी परमशिवम की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी है। इस फेसबुक पोस्ट पर तमिल में दो टिप्पणियाँ भी की गईं, जिनमें लिखा था, ‘कृष्ण जयंती एक ऐसे व्यक्ति का उत्सव है जो नहाते समय लड़कियों के कपड़े छिपाता था।’

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं

इस मामले में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा, ‘हिंदू भगवान का आपत्तिजनक चित्रण करना और जानबूझकर लाखों लोगों की आस्था को ठेस पहुँचाना उचित नहीं ठहराया जा सकता।’ इस तरह के कृत्य देश में नफरत और धार्मिक आक्रोश फैला सकते हैं, सामाजिक व्यवस्था को बिगाड़ सकते हैं और सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान पहुँचा सकते हैं। लोगों में धार्मिक देवी-देवताओं और प्रतीकों के प्रति अपार श्रद्धा होती है और ऐसी चीज़ें समाज के एक बड़े वर्ग को आहत कर सकती हैं और सामाजिक अशांति भी पैदा कर सकती हैं, इसलिए ऐसे चित्रणों को संवेदनशीलता से देखना ज़रूरी है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है।

रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने कहा कि भगवान कृष्ण द्वारा गोपियों के वस्त्र छिपाने की कहानी को एक प्रतीकात्मक कहानी के रूप में देखा जाता है, जिसकी कई अलग-अलग व्याख्याएँ हैं। इसमें यह भी शामिल है कि यह गोपियों की एक परीक्षा थी कि क्या उनकी भक्ति सांसारिक मोह-माया से परे थी। अदालत ने कहा कि यह कहानी आध्यात्मिक खोज और त्याग के महत्व को उजागर करती है।

पी. परमशिवम ने इस मामले में एक प्राथमिकी दर्ज कराई थी, लेकिन फरवरी में पुलिस ने एक नकारात्मक रिपोर्ट पेश की और कहा कि उन्हें मेटा से पोस्ट करने वाले उपयोगकर्ता की जानकारी नहीं मिल सकी। इसके बाद, मार्च में, निचली अदालत ने पुलिस की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और मामले को अनिर्धारित घोषित करते हुए बंद कर दिया।

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अदालत ने पुलिस की लापरवाही पर नाराजगी जताई

अदालत ने पुलिस की लापरवाही पर नाराज़गी जताई और कहा कि पुलिस ने एक बेहद गंभीर मामले को बेहद लापरवाही से संभाला है। अदालत ने कहा कि पुलिस ने जाँच को सिर्फ़ फ़ेसबुक से यूज़र की जानकारी हासिल करने तक सीमित रखा, जबकि यूज़र का पता उसकी प्रोफ़ाइल पर मौजूद निजी जानकारियों से लगाया जा सकता था। अदालत ने कहा कि जाँच पूरी शिद्दत से नहीं की गई। अदालत ने कहा कि यूज़र ने अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर पोस्ट में सारी हदें पार कर दी हैं।

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