Freefire Addiction: हर चौथा बच्चा आज freefire का दीवाना है. आज हम आपको इस गेम से जुड़ी ऐसी घटना के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर आप कांप उठेंगे. दरअसल, लखनऊ के इंदिरा नगर थाना क्षेत्र में एक दिल दहला देने वाली घटना हुई. दरअसल, यहां एक मासूम बच्चे की जान चली गई. बेहतर भविष्य की तलाश में परिवार के साथ लखनऊ आया 13 साल का विवेक मोबाइल गेम “फ्री फायर” का दीवाना था, क्या पता था कि ये उसका आखिरी गेम होगा और उसका परिवार उसे आखिरी बार देख रहा होगा.
एक गेम ने उजाड़ दी जिंदगी
आपको बता दें कि सीतापुर से आए विवेक का परिवार आठ दिन पहले ही परमेश्वर एन्क्लेव कॉलोनी में किराए के मकान में रहने आया था. तकरोही इलाके में एक किराने की दुकान पर काम करने वाला विवेक मेहनती था, लेकिन मोबाइल गेम उसकी जिंदगी को बर्बादी की तरफ ले गया था. उसकी बहन चांदनी रुंधे ने बताया कि वो दिन भर काम करता और रात के 10-11 बजे तक फ्री फायर खेलता रहता. इस दौरान वो किसी से बात नहीं करता था. अगर कोई उसे टोकता, तो गुस्से में चीज़ें फेंक देता और सब पर चिल्लाने लगता था.
एक दिन में सब हो गया तबाह
बुधवार का दिन था और विवेक छुट्टी पर ही था, हमेशा की तरह विवेक अपने मोबाइल फ़ोन में freefire खेल रहा था और खोया हुआ था. उसकी बड़ी बहन अंजू घर के कामों में लगी हुआ थी. इस दौरान विवेक ने उससे कहा कि दीदी, आप अपना काम निपटा लो, मैं कोई गेम खेल लेता हूं. इस दौरान अंजू ने सोचा कि वो अपने भाई को थोड़ा वक़्त देगी, लेकिन जब वो वापस लौटी, तो उसने जो देखा वो काफी हैरान कर देने वाला था. विवेक बिस्तर पर बेहोश पड़ा था, उसके मोबाइल स्क्रीन पर अभी भी फ्री फायर गेम चल रहा था. अंजू ने पहले सोचा कि शायद खेलते-खेलते उसे नींद आ गई होगी, जैसा कि अक्सर होता था. उसने मोबाइल फ़ोन बंद किया, उसे चार्ज पर लगाया और विवेक को कंबल से ढक दिया. लेकिन जब काफी देर तक कोई हलचल नहीं हुई, तो उसके दिल में डर बैठ गया. उसने परिवार को फ़ोन किया, और वे उसे लोहिया अस्पताल ले गए. वहाँ डॉक्टरों ने जो बताया, उससे परिवार स्तब्ध रह गया. विवेक अब इस दुनिया में नहीं रहा.
पोस्टमार्टम से होगा खुलासा
इंदिरा नगर थाना प्रभारी ने जानकारी दी कि शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है और रिपोर्ट से मौत की सही वजह का पता चलेगा. परिवार ने अभी तक कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है, लेकिन सवाल यह है कि क्या इस जाँच से मासूम बच्चे की याददाश्त वापस आ पाएगी? क्या इससे समाज को बच्चों को स्क्रीन की लत से बचाने के महत्व का एहसास होगा?
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