BSP AIMIM Alliance: बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन की जीत जहां तय दिखी, वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का अप्रत्याशित उभार इस चुनाव का सबसे बड़ा राजनीतिक ट्विस्ट बनकर सामने आया. बसपा ने एक सीट जीतकर सभी बड़े दलों को चौंका दिया, खासतौर पर तब जब पार्टी न तो चुनावी फील्ड में मजबूत दिखाई दे रही थी और न ही मायावती ने ज्यादा प्रचार किया था.
इस सीमित उपस्थिति के बावजूद बसपा का यह प्रदर्शन यूपी में आगामी चुनावों के संदर्भ में बीजेपी और सपा दोनों के लिए चुनौती बनता दिख रहा है.
बसपा और एआईएमआईएम के बीच गठजोड़!
चुनाव के दौरान बसपा और एआईएमआईएम के बीच बढ़ती निकटता ने भी राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी. एआईएमआईएम नेताओं ने खुले तौर पर कई सीटों पर बसपा के समर्थन की अपील की, जबकि दोनों दलों का आधिकारिक गठबंधन नहीं था. बसपा नेता अनिल पटेल और विजयी उम्मीदवार पिंटू यादव की प्रेस कॉन्फ्रेंस में एआईएमआईएम के झंडे का दिखना, जुलूसों में एआईएमआईएम की उपस्थिति और प्रदेश अध्यक्ष द्वारा बसपा को वोट देने की अपील इस बात का संकेत थीं कि दोनों दल पर्दे के पीछे तालमेल बना रहे हैं.
वहीं, असदुद्दीन ओवैसी ने अपने आधिकारिक गठबंधन सहयोगी चंद्रशेखर आजाद के साथ एक भी मंच साझा नहीं किया, जो इन अटकलों को और मजबूत करता है.
क्या साथ आएंगे मायावती और ओवैसी?
वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि मायावती और ओवैसी के बीच बातचीत जरूर हुई है. एआईएमआईएम प्रवक्ता असीम वकार द्वारा मायावती को प्रधानमंत्री बनाने की इच्छा जताना भी रिश्तों में संभावित गर्माहट की ओर इशारा करता है. अक्टूबर में मायावती की रैलियों और मुस्लिम समाज के साथ बैठकें और इसके बाद ओवैसी की बढ़ती नजदीकियां इस राजनीतिक समीकरण को मजबूत बनाती हैं.
दोनों दल पहले भी 2020 में साथ आ चुके हैं और बसपा ही एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी है जिसने ओवैसी के साथ गठबंधन किया था. विशेषज्ञों का मानना है कि मार्च-अप्रैल 2026 तक इस संबंध में बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम दिख सकता है.
बिहार चुनाव में चमकी ओवैसी की एआईएमआईएम
बिहार चुनाव में एआईएमआईएम का प्रदर्शन भी उल्लेखनीय रहा, जहां उसे 5 सीटें मिलीं और 10 सीटों पर बहुत कम अंतर से हार मिली. मुस्लिम वोट बैंक पर दावा करने वाली पार्टियों द्वारा ‘बीजेपी की बी टीम’ कहा जाने के बावजूद मुसलमानों ने ओवैसी का साथ दिया, जिससे उनकी स्वीकार्यता बढ़ी है. यदि बसपा और एआईएमआईएम साथ आते हैं तो यूपी में इंडिया गठबंधन को बड़ा नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है.
बीजेपी की बढ़ने वाली है मुश्किलें!
पश्चिमी यूपी में जाटव-मुस्लिम वोट मिलकर 55–60% तक पहुंचता है और यहां यादव वोट अपेक्षाकृत कमजोर है. ओवैसी की बढ़ती पैठ और बसपा के परंपरागत जाटव वोट मिलकर कई सीटों पर परिणाम बदल सकते हैं. इतिहास भी बताता है कि जब बसपा मजबूत होती है, तब बीजेपी कमजोर होती है.
कुल मिलाकर, मायावती और ओवैसी की नजदीकियां 2027 के यूपी चुनाव में नया राजनीतिक खेल रच सकती हैं और वर्तमान समीकरणों को पूरी तरह बदलने की क्षमता रखती हैं.

