मार्च 2020 में YouTube ने कोविड-19 और चुनावों से जुड़ी गलत जानकारी (misinformation) रोकने के लिए सख्त कंटेंट मॉडरेशन पॉलिसी लागू की थी. इस दौरान कई बड़े-बड़े क्रिएटर्स को प्लेटफॉर्म से बैन कर दिया गया था. लेकिन अब कंपनी ने अपने नियमों में बदलाव किया है, जिससे उन क्रिएटर्स को फिर से वापसी का मौका मिल सकता है जो इन पुराने नियमों की वजह से प्लेटफॉर्म से बाहर हो गए थे.
पुराने बैन हुए चैनल अब लौट सकते हैं
Alphabet (जो YouTube की पैरेंट कंपनी है) ने अमेरिकी हाउस ज्यूडिशियरी कमिटी को भेजे एक लेटर में बताया कि जिन चैनलों को अब-खत्म हो चुकी पॉलिसियों के तहत बैन किया गया था, वे अब री-इंस्टेटमेंट (Reinstatement) के लिए अप्लाई कर सकते हैं. कंपनी ने कहा कि यह कदम फ्री एक्सप्रेशन यानी अभिव्यक्ति की आजादी को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है. अमेरिका में कंजर्वेटिव नेताओं ने लंबे समय से YouTube पर आरोप लगाया था कि वह दाईं सोच रखने वाले क्रिएटर्स की आवाज दबा रहा है. अब कंपनी इस नई पॉलिसी को “ताजा दृष्टिकोण” (fresh perspective) बता रही है.
2020 की सख्त पॉलिसी क्यों बनी थी?
2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव और कोविड महामारी अपने चरम पर थे. उस समय YouTube ने “election integrity” और “medical misinformation” से जुड़ी कंटेंट पॉलिसी बनाई थी. कई हाई-प्रोफाइल चैनल जैसे Dan Bongino और Steve Bannon के चैनल इन्हीं नियमों का उल्लंघन करने के कारण बैन कर दिए गए थे. अब कंपनी का कहना है कि पॉलिसी समय और परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है. इसीलिए जो चैनल उन पुराने नियमों की वजह से हटाए गए थे, उन्हें अब प्लेटफॉर्म पर वापसी का मौका दिया जाएगा.
अभी भी रहेंगे कुछ नियम
हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि अब YouTube पर सब कुछ चल जाएगा. कंपनी ने साफ कहा है कि खतरनाक या हानिकारक कंटेंट (harmful content) पर अभी भी सख्ती जारी रहेगी. नए बदलाव के तहत YouTube अब फैक्ट-चेकर्स को कंटेंट हटाने या उस पर लेबल लगाने की ताकत नहीं देगा. इसके बजाय, प्लेटफॉर्म “कम्युनिटी नोट्स”, “कॉन्टेक्स्ट लेबल्स” और “इंफॉर्मेशन पैनल्स” का इस्तेमाल करेगा ताकि दर्शकों को सही जानकारी मिल सके.
क्यों बदल रहा है YouTube अपना रवैया?
Alphabet का कहना है कि महामारी और चुनावों के दौरान लागू नियम उसी समय की जरूरत थे. लेकिन अब हालात बदल चुके हैं और YouTube की गाइडलाइन्स को भी नए समय के हिसाब से ढालना जरूरी है. सिर्फ YouTube ही नहीं, बल्कि Meta (Facebook और Instagram की पैरेंट कंपनी) ने भी हाल ही में अपना थर्ड-पार्टी फैक्ट-चेकिंग प्रोग्राम खत्म कर दिया. अब यह कंपनी भी कम्युनिटी नोट्स सिस्टम अपनाने जा रही है.