भारत में टोल टैक्स की कहानी मुख्य रूप से सड़कों के रखरखाव और निर्माण की लागत को पूरा करने के लिए है, हालांकि, अधिकांश नेशनल और स्टेट हाइवेज पर दोपहिया वाहनों से टोल टैक्स नहीं लिया जाता. इसका कारण सिर्फ सड़क पर हल्के वजन के वाहन होने तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक लाभ भी जुड़े हैं. टोल बूथों पर भीड़ कम होती है और कम आय वाले लोगों को वित्तीय राहत मिलती है.
सड़क पर कम नुकसान
टोल टैक्स का मुख्य उद्देश्य भारी वाहनों से होने वाले सड़क नुकसान की भरपाई करना है, दोपहिया वाहन हल्के होते हैं और उनकी सड़कों पर प्रेशर कम होता है. इसके कारण इनसे सड़क को ज्यादा टूट-फूट या गड्ढे नहीं बनते, यदि दोपहिया वाहनों से टोल लिया जाए तो इसका आर्थिक लाभ भी बहुत कम होगा इसलिए सरकार ने नियमों में इसे शामिल कर दोपहिया वाहनों को छूट देने का प्रावधान रखा है.
सामाजिक और आर्थिक कारण
दोपहिया वाहन आमतौर पर निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोग इस्तेमाल करते हैं, यदि उनके ऊपर टोल टैक्स लगाया जाए, तो यह उनके लिए आर्थिक बोझ बन सकता है. सरकार इस बोझ को कम करने के लिए दोपहिया वाहनों को छूट देती है, यह कदम आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को राहत पहुंचाने और उनकी यात्रा को सरल बनाने के लिए उठाया गया है.
टोल बूथ पर भीड़ कम करना
टोल टैक्स लेने के दौरान टोल बूथों पर वाहनों की लंबी कतार लग जाती है, यदि दोपहिया वाहनों से टोल लिया जाए, तो कतार और लंबी हो सकती है. छूट देने से दोपहिया वाहन तेजी से टोल बूथ से गुजर सकते हैं, इससे ट्रैफिक की भीड़ कम होती है और समय की बचत होती है, यह नियम सड़क यातायात को सुचारू बनाए रखने में मदद करता है.
लागत-प्रभावशीलता और इकोनॉमिक नजरिया
दोपहिया वाहनों से टोल वसूलना आर्थिक रूप से बहुत फायदेमंद नहीं होता, उनके लिए अलग लेन बनाना और टोल कलेक्शन करना महंगा पड़ सकता है. छोटे शुल्क के लिए टोल बूथ पर एक्स्ट्रा वर्कर्स और संसाधनों का खर्च करना सही नहीं है इसलिए सरकार ने इसे व्यावहारिक और लागत प्रभावी समाधान के रूप में देखा और दोपहिया वाहनों को टोल टैक्स से छूट दी, यह नियम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क (दरों का निर्धारण और संग्रह) 2008 के तहत लागू है.