हिंदू धर्म में जब किसी सुहागिन यानी विवाहित महिला का निधन होता है, तो उसके अंतिम संस्कार से पहले उसे दुल्हन की तरह सजाया जाता है। यह परंपरा सुनकर कई लोग हैरान हो जाते हैं, लेकिन इसके पीछे गहरा धार्मिक और भावनात्मक कारण छिपा है।
श्रृंगार क्यों जरूरी माना गया?
कहते हैं कि एक विवाहित स्त्री का श्रृंगार सिर्फ उसकी सुंदरता के लिए नहीं, बल्कि उसके सौभाग्य और शक्ति का प्रतीक होता है। बिंदी ऊर्जा का, मांग का सिंदूर पति की लंबी उम्र का, पायल समृद्धि का और मेहंदी प्रेम व सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है। यही वजह है कि अंतिम समय में भी यह परंपरा निभाई जाती है, ताकि उसे पूरे सम्मान और आदर के साथ विदा किया जा सके।
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धार्मिक मान्यता
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, सोलह श्रृंगार देवी-स्वरूप का प्रतीक हैं। माना जाता है कि जब सुहागिन महिला का अंतिम संस्कार इन श्रृंगारों के साथ किया जाता है, तो वह न केवल इस जीवन से विदा होती है बल्कि अगले जन्म में भी शुभ फल प्राप्त करती है। कुछ कथाओं में तो यह भी कहा गया है कि यह परंपरा माता सीता के समय से चली आ रही है।
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भावनात्मक जुड़ाव
परिवार के लिए यह पल बेहद दर्दनाक होता है, लेकिन सोलह श्रृंगार करने से यह विदाई एक तरह से सुखद और सम्मानपूर्ण यात्रा में बदल जाती है। यह मानो स्त्री को आखिरी बार ‘सुहागन रूप’ में विदा करने का भाव है, ताकि उसकी यादें परिवार के दिल में हमेशा सम्मान और गर्व के साथ बनी रहें।
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