अगर आप किसी निजी कंपनी में काम करते हैं और आपका बॉस छुट्टी देने में कंजूस है, तो अक्सर मजबूरी में एक छोटा-सा झूठ बोलना पड़ जाता है कभी दादी बीमार, कभी किसी रिश्तेदार का देहांत. छुट्टी तो मिल जाती है, लेकिन मन में गिल्ट भी बैठ जाता है. ऐसी ही स्थिति को लेकर एक भक्त ने वृंदावन के प्रेमानंद महाराज से सवाल पूछा, क्या काम से छुट्टी लेने के लिए झूठ बोलना पाप है? महाराज जी ने बहुत सरल और गहरी बात समझाई. अगर आप भी इस दुविधा में हैं कि मजबूरी का झूठ सही है या गलत, तो जानिए महाराज जी का मार्गदर्शन क्या कहता है.
क्या छुट्टी के लिए झूठ बोलना पाप है?
वृंदावन के प्रेमानंद महाराज का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. एक भक्त ने पूछा, “प्रेमानंद जी महाराज, मैं एक निजी कंपनी में काम करता हूँ. अगर मुझे ऑफिस से छुट्टी नहीं मिलती, तो मुझे झूठ बोलना पड़ता है. मान लीजिए, मेरी दादी, चाचा या किसी रिश्तेदार की मृत्यु हो गई है. तब मुझे छुट्टी मिल जाती है. क्या यह सही है? एक ही व्यक्ति को दो, तीन, चार बार पीटा जाता है.”
एक और व्यक्ति ने कहा, “अगर आप हर डेढ़ महीने में वृंदावन जाने के लिए छुट्टी माँगते हैं, तो बॉस कभी नहीं देते. मैं आज भी ऑफिस से झूठ बोलकर आया हूँ. अब सोचता हूँ, क्या इस तरह झूठ बोलकर छुट्टी लेना पाप है?”
सत्य के समान कोई तपस्या नहीं, और झूठ के समान कोई पाप नहीं.
कभी-कभी ऐसा लगता है कि झूठ बोलने से काम जल्दी हो जाता है. मानो झूठ बोलने से तुरंत छुट्टी मिल जाएगी. हम ऐसे छोटे-मोटे झूठ मज़ाक में या मजबूरी में बोल देते हैं. लेकिन सच तो यह है कि झूठ बोलना गलत है.
महाराज जी कहते हैं, “कलियुग के प्रभाव से आज झूठ बोलना आम बात हो गई है. झूठ लेना, झूठ देना, झूठ खाना, सब झूठ पर आधारित है. लेकिन याद रखना, झूठ बोलना पाप है. जैसा कि कहा गया है, “सत्य के समान कोई तपस्या नहीं, और झूठ के समान कोई पाप नहीं.” अर्थात्, सत्य के समान कोई तपस्या नहीं, और झूठ के समान कोई पाप नहीं. यदि कोई हृदय से सच्चा है, तो वह सच्चा भक्त है. इसलिए हमें झूठ बोलने से यथासंभव दूर रहने का प्रयास करना चाहिए.
हाँ, यदि कोई भक्ति या ईश्वर से संबंधित किसी बात पर झूठ बोलता है, तो उसके इरादे गलत नहीं माने जाते क्योंकि उसके इरादे शुद्ध होते हैं. लेकिन सांसारिक मामलों में झूठ बोलने से बचना ही बेहतर है. सच बोलने की आदत हमें ईश्वर के करीब लाती है.