Pitru Paksha 2025: इस बार पितृपक्ष का प्रारंभ प्रतिपदा 8 सितंबर से हो रहा है और 21 सितंबर को अमावस्या का श्राद्ध होगा। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध और तर्पण के साथ कुछ न कुछ दान भी दिया जाता है और इसी बात को लेकर आधुनिक पीढ़ी असमंजस में पड़ जाती है। इस लेख में हम बताएंगे कि पितरों का श्राद्ध कब करना चाहिए और श्राद्ध वाले दिन किस वस्तु की भेंट करनी चाहिए ताकि पितरों को संतुष्टि हो।
पितृपक्ष में पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध के साथ लोगों के मन में सवाल उठता है कि इस मौके पर दान के रूप में ऐसा क्या दिया जाए जो ब्राह्मण को भी अच्छा लगे और पितर भी प्रसन्न हों। दान का विषय तो बाद में आता है लेकिन इसके पहले आपको अपने पितरों की पसंद और नापसंद के बारे में जानना जरूरी है। आपके मन में पितरों का श्राद्ध करने का भाव तो है किंतु आपका उन पितरों के बारे में पता ही नहीं तो मन में हीनता लाने की कतई जरूरत नहीं है। वास्तव में पसंद या नापसंद तो तभी पता लगती है जब साथ में रहा जाए। आधुनिक समय में बच्चे पहले बोर्डिंग हाउस फिर आगे की पढ़ाई के लिए बाहर भेज दिए जाते हैं तो अपनी पुरानी पीढ़ी के बारे में कैसे जान सकेंगे। लेकिन आप अपने माता-पिता से दिवंगत बाबा, परबाबा आदि के नाम तथा उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में जानकारी तो ले ही सकते हैं। यह अवश्य ही करना चाहिए। यदि माता-पिता के समय नहीं है तो उनसे समय निकाल कर इस बारे में बात करना चाहिए।
पूर्वजों के बारे में रखें जानकारी
इस बार पितृ पक्ष में हर माता-पिता का कर्तव्य है कि वो अपनी संतानों को अपने ज्ञात पूर्वजों के बारे में जानकारी अवश्य ही दें। पितृपक्ष के 15 दिनों में उनके जीवन से जुड़ी हुई प्रेरक घटनाओं को भावी पीढ़ी के सामने रखने का प्रयास करें, उनके चित्र और वीडियो संजो कर रखे हों तो उन्हें भी शेयर करें। हर व्यक्ति को अपनी तीन से चार पीढ़ियों के बारे में तो पता होना ही चाहिए और यह तभी हो सकेगा जब परिवार के सारे लोग एक साथ मिलें। मिलने पर एक दूसरे के हालचाल तो लिए ही जाते हैं, समय निकाल कर पूर्वोजों की याद भी करें और उनके कृत्यों की चर्चा भी। उनसे जुड़ी यादों को अपने मानस पटल पर संजो कर रखना चाहिए। पितरों के बारे में संपूर्ण जानकारी उनका नाम, वह क्या करते थे, परिवार और समाज के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों को जानना भी एक प्रकार से पितरों का नमन, पूजन और श्राद्ध ही है।
कब करें पितरों का श्राद्ध
सामान्य तौर पर व्यक्ति जिन पितरों से सीधा जुड़ा होता है, उनका श्राद्ध भी उसी तिथि में करना चाहिए जिस तिथि को उन्होंने संसार छोड़ा था। ऐसा करना अधिक उपयुक्त माना जाता है। जैसे किसी के बाबा जी ने चतुर्थी के दिन शरीर का त्याग किया था, तो पितृपक्ष में चतुर्थी को ही श्राद्ध करना चाहिए। अब कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जिनके मन में अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने की श्रद्धा तो है लेकिन उन्हें तिथि की जानकारी नहीं है। धर्म शास्त्रों में इसके लिए प्रावधान दिया गया है कि जिनकी तिथि ज्ञात नहीं है उनका श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए जिसे देव पितृ अमावस्या कहा जाता है और यदि दिवंगत आत्मा महिला हैं तो उनके लिए नवमी की तिथि है जिसे मातृ नवमी कहा जाता है।
दान करना है इन वस्तुओं को चुन सकते
श्राद्ध करते समय इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए कि जिस विशिष्ट पूर्वज के लिए आप दान देना चाहते हैं और बाजार में खरीदारी करने जा रहे हैं तो वह वस्तु शीघ्र ही इस्तेमाल करने वाली हो। ऐसा न हों कि आप धन खर्च कर जो वस्तु खरीद रहे हैं वह लंबे समय तक बिना इस्तेमाल के ही पड़ी रहे। एक बात और भी ध्यान देना चाहिए कि जिस पूर्वज के निमित्त दान करना है, उसकी पसंद की चीज दें तो और भी अच्छा रहेगा। दान कर्म में हमेशा सार्थकता और पवित्रता का भाव रहना चाहिए लेकिन यदि मान लीजिये कि बाबा जी शराब या सिगरेट का सेवन करते थे और इन वस्तुओं का दान भूल कर भी नहीं करना है।