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Kutup Kaal: पितृ पक्ष में कुतुप काल में ही क्यों करना चाहिए श्राद्ध? नहीं किया तो भुगतने होंगे बुरे परिणाम

Kutup Kaal In Shradh पितृ पक्ष में किसी का भी श्राद्ध करने के लिए एक समय निर्धारित किया गया है, ऐसे में कुतुप काल के दौरान ही श्राद्ध करना चाहिए, क्योंकि इस समय पर ही पितृ श्राद्ध का भोजन ग्रहण कर पाते हैं.

By: chhaya sharma | Published: September 15, 2025 10:16:40 PM IST



What Is Kutup Kaal In Shradh: 7 सितंबर से पितृ पक्ष शुरु हो चुके, जो 21 सितंबर को समाप्त होंगे. कहां जाता हैं कि इन 15 दिनों में मृत पूर्वजों के श्राद्ध किया जाता है, क्योंकि ऐसा करने से पितृ को तृप्त और मोक्ष मिलता. पितृ पक्ष में किसी का भी श्राद्ध करने के लिए एक समय निर्धारित किया गया है, क्योंकि उस निर्धारित समय पर ही भोजन ग्रहण कर पाते हैं. घर के किसी भी मृत पूर्वजों का श्राद्ध के लिए कुतुप काल सबसे अच्छा समय माना जाता है. तो चलिए जानते हैं कि कुतुप काल क्या है

कुतुप काल क्या है ?

पुराणों के मुताबिक पितरों का श्राद्ध करने  के लिए कुतुप काल सबसे अच्छा समय होता है. कुतुप काल दिन का आठवां मुहूर्त होता है. जो तकरीबन सुबह 11.30 से 12.42 के बीच होता है. कहा जाता हैं कि इस उचित समय पर श्राद्ध करने से फलदायी होता हैं और इस समय पर अग्नि के जरिए पितरों को भोग लगाना बेहद शुभ माना जाता है, ऐसा इसलिएक्योंकि इस समय पितरों का मुख पश्चिम की ओर हो जाता है और पितर बिना किसी कष्ट के वंशजों के जरिए लगाए गए श्रद्धा के भोग ग्रहण करते हैं.

दोपहर का समय श्राद्ध करने के लिए क्यों है श्रेष्ठ होता है

पुराणों में कहा गया है कि सू्र्य की अग्नि के जरीए ही श्राद्ध पितरों तक पहुंचता है. इसलिए पुराणों में सूर्य को पितर नाम भी दिया गया है. वहीं दोपहर के समय सूर्य अपने पूरे प्रभाव में होता है, जिससे पितरों को श्राद्ध का भोग ग्रहण करने में  कोई कष्ट नहीं होता है.

कुतुप काल में श्राद्ध न करने पर क्या होगा ?

उचित समय में या मुहूर्त यानी कुतुप काल में पितरों का श्राद्ध कर्म ना किया जाए, तो अनुष्ठान अधूर रह जाता है और  पितरों की आत्मा भी तृप्त किए बिना वापस लौट जाती है, जिसके बाद आपको जिवन में परिवार से संबंधित और व्यापार से संबंधित परेशानियां झेलनी पड़ सकती है. 

सुबह और शाम में श्राद्ध क्यों नहीं करना चाहिए ?

धर्म ग्रंथों के मुताबिक सुबह के समय देवी-देवताओं की पूजा की जाती है और और पितर-देव पूजन एक साथ नहीं किए जाते हैं. दूसरी ओर शाम का समय राक्षसों का माना जाता है, इसलिए श्राद्ध करने के लिए यह समयनिंदित माना जाता है.

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