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Skandamata: नवरात्रि के पांचवें दिन इन देवी की होती है आराधना, कष्टों का अंत होने के साथ ही मिलता है तेज और मोक्ष

Skandmata: नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की आराधना का विधान है. स्कंद अर्थात कार्तिकेय जो मां पार्वती के बड़े पुत्र और देवताओं के सेनापति भी हैं. इस स्वरूप में माता की गोद में कार्तिकेय बाल रूप में विराजमान हैं इसलिए उन्हें स्कंदमाता कहा जाता है. सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी स्कंदमाता की आराधना करने से साधक को माया, लौकिक और सांसारिक सभी तरह के बंधनों से मुक्ति मिलने के साथ ही अलौकिक तेज प्राप्त होता है. मां के इस रूप की आराधना से भगवान स्कंद की पूजा का फल भी स्वाभाविक रूप से मिल जाता है.

By: Pandit Shashishekhar Tripathi | Published: September 18, 2025 1:03:08 PM IST



Navratri 2025: नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की आराधना का विधान है. स्कंद अर्थात कार्तिकेय जो मां पार्वती के बड़े पुत्र और देवताओं के सेनापति भी हैं. इस स्वरूप में माता की गोद में कार्तिकेय बाल रूप में विराजमान हैं इसलिए उन्हें स्कंदमाता कहा जाता है. सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी स्कंदमाता की आराधना करने से साधक को माया, लौकिक और सांसारिक सभी तरह के बंधनों से मुक्ति मिलने के साथ ही अलौकिक तेज प्राप्त होता है. मां के इस रूप की आराधना से भगवान स्कंद की पूजा का फल भी स्वाभाविक रूप से मिल जाता है. 

माता का स्वरूप

स्कंदमाता देवी दुर्गा का पांचवां रूप है. उन्हें पर्वत राज हिमालय की पुत्री पार्वती भी कहा जाता है. श्वेत वर्ण की मां का यह स्वरूप चार भुजा धारी है जिनके दाहिनी ओर ऊपर की भुजा में बाल रूप भगवान कार्तिकेय गोद में हैं तो नीचे की भुजा में कमल का फूल धारण किए हैं. बायीं तरफ के एक हाथ में कमल का फूल तो दूसरा हाथ वरद मुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद दे रहा है. सफेद गोरा रंग होने के कारण ही उन्हें शुभ्र वर्णा भी कहा जाता है. इनका वाहन भी सिंह ही है. सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री होने के कारण माता की आराधना से भक्तों को तेज प्राप्त होता है. नवरात्रि के पांचवें दिन उनकी उपासना करने से सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है. उनकी कथा सुनने या पढ़ने वाले भक्तों को संतान सुख प्राप्त होता है इसलिए संतान के इच्छुक लोगों को उनकी आराधना अवश्य ही करनी चाहिए. 

स्कन्द शब्द का अर्थ और मर्म 

स्कंद शब्द व्यवहारिक ज्ञान और क्रिया के एक साथ होने का प्रतीक है. जब किसी व्यक्ति का कर्म सही और व्यवहारिक ज्ञान से लिप्त होता है तब स्कंद तत्व का उदय होता है और देवी दुर्गा स्कंद तत्व की माता हैं. उदाहरण के रूप में समझने के लिए अक्सर देखा जाता है कि लोगों के पास ज्ञान तो होता है किंतु उचित समय पर वे प्रयोग में नहीं ला पाते हैं. घर में कभी किसी उपकरण के खराब होने पर वे अपने जिस ज्ञान से ठीक करते हैं, उसे ही व्यवहारिक ज्ञान कहा जाता है. स्कंद शब्द ज्ञान शक्ति, व्यवहार शक्ति और कर्म शक्ति का एक साथ सूचक है. स्कंदमाता वह दैवीय शक्ति हैं, जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाकर ज्ञान को कर्म में बदलती हैं. मान्यता है कि देवी दुर्गा इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का समागम हैं तथा इन त्रिशक्तियों के साथ शिवतत्व के मिलन से ही स्कंद का जन्म होता है.

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