Shukla and Krishna Paksha: हिंदू धर्म में तिथियों का विशेष महत्त्व होता है, क्योंकि तिथि से ही पता लगता है कि कौन सा कार्य कब करना चाहिए और उस दिन शुभ मुहूर्त है या नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि कार्य को उसकी अनुकूल तिथि में करने से सफलता और शुभता की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. हिंदू पंचाग में तिथियों और पक्षों को चंद्रमा से जोड़ा गया है. क्योंकि चंद्रमा की गति पर ही तिथि का निर्धारण होता है. हिंदू पंचाग के अनुसार एक मास में 30 तिथि होती है और 15-15 दिनों के दो चक्र होता है, जिसे शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष कहा जाता है और इस दौरान पड़ने वाली तिथियों के अनुसार भी मांगलिक कार्य निर्धारित होते हैं. पंचांग के अनुसार अमावस्या को कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि और पुरणिमा को शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि बताया गया है
कृष्ण पक्ष की किसी भी तिथि में नहीं किया जा सकता शुभ कार्य
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार कृष्ण पक्ष की किसी भी तिथि में शुभ कार्य नहीं किया जा सकता, क्योंकि कृष्ण पक्ष में पूर्णिमा के बाद चंद्रमा का आकार घटता है, जो चंद्रमा का बल कम होने का प्रतीक है, क्योंकि इस दौराान चंद्रमा की रोशनी और शक्ति कम होती है. प्रतिपदा तिथि: (पूर्णिमा के अगले दिन से शुरू), द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या यह 15-दिवसीय अवधि हिंदू पंचांग में चंद्रमा के घटने के काल को दर्शाती है. हालांकि कृष्ण पक्ष कि कुछ तिथियां ऐसी है, जो विशेष कार्यों के लिए बेहद शुभ मानी जा सकती हैं. चलिए जानते हैं यहां
क्या कहता है हिंदू पंचांग
हिंदू पंचांग के अनुसार कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की तिथियों को पांच भागों में बांटा है और इन दोनों ही पक्ष में कई तिथियां ऐसी है जिसे शुभ और अशुभ माना गया है, तो चलिए जानते हैं यहां
नंदा तिथि : प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी तिथि को नंदा तिथि बताया गया है. पंचांग के अनुसार इन तिथियों में अंतिम चौबीस मिनट को छोड़कर हर तरह के मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं.
भद्रा तिथि : शुक्ल और कृष्ण पक्ष की द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी को भद्रा तिथि कहा जाता हैं. जो पूजा, व्रत और जाप आदि जैसे कार्य को करने के लिए शुभ माना जाता है. इसके अलावा आप इन तिथियों में कोई वाहन भी खरीदा जा सकते है. लेकिन इन तिथियों में घर में कोई मांगलिक कार्य नहीं कराना चाहिए
जया तिथि : प्रत्येक महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की तृतीया, अष्टमी, त्रयोदशी को जया तिथि कहा जाता है और इन तिथियों में न्यायिक कार्य समेत, विद्या संबंधी कार्य और वाहन खरीदना शुभ माना जाता है.
रिक्ता तिथि : शुक्ल और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी को रिक्ता तिथि कहा जाता है.जो तंत्र-मंत्र के कार्यों के लिए यह शुभ मानी जाती है. लेकिन इन तिथियों में गृह प्रवेश जैसा मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए.
पूर्णा तिथि: प्रत्येक माह के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की पंचमी, दशमी, पूर्णिमा, अमावस्या को पूर्णा तिथि कहते हैं. इस दौरान सिर्फ अमावस्या को छोड़ कर किसी तिथि में कोई भी शुभ-मांगलिक कार्य नहीं किया जा सकता.
शून्य तिथि : इन पांच प्रकार की तिथियों के अलावा शून्य तिथि भी होती है. जो चैत्र कृष्ण की अष्टमी, वैशाख कृष्ण की नवमी, ज्येष्ठ कृष्ण की चतुर्दशी, ज्येष्ठ शुक्ल की त्रयोदशी, आषाढ़ कृष्ण की षष्ठी और मार्गशीर्ष कृष्ण की सप्तमी व अष्टमी, माघ कृष्ण की पंचमी और माघ शुक्ल की तृतीया पर आती है. इन तिथियों में विवाह कार्य करना वर्जित होता है.
इन तिथियों में भी नहीं होता कोई शुभ कार्य
इसके अलावा शुक्ल पक्ष की पहली और कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं, चौदहवीं और पंद्रहवीं तिथि को काली तिथि कहा जाता है. इन तिथियों में शुभ कार्य की शुरुआत के लिए कुछ विशेष मामलों को छोड़कर अच्छा नहीं माना जाता है, क्योंकि इन तिथियों के दौरान चन्द्रमा डूबा हुआ होता है.
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