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Fake Marriage Culture: फेक शादी का कल्चर किस तरह डाल रहा है धार्मिक मान्यताओं पर असर

Fake marriage culture: आजकल सोशल मीडिया और रियलिटी कंटेंट के बढ़ते ट्रेंड के बीच फेक शादी या ड्रामा का चलन काफी बढ़ता जा रहा है। लोग कंटेंट बनाने, लाइक्स और फॉलोअर्स पाने या सिर्फ चर्चा में बने रहने के लिए नकली शादी का आयोजन कर रहे हैं। इसमें मंडप, वरमाला, सात फेरे और मेहमानों का पूरा माहौल बनाया जाता है, लेकिन उसका कोई वैवाहिक या धार्मिक महत्व नहीं होता।

By: Shivi Bajpai | Published: September 15, 2025 3:19:24 PM IST



Fake Marriage: आज के डिजिटल दौर में जहां हर चीज़ सोशल मीडिया और मनोरंजन से जुड़ चुकी है, वहीं फेक शादी का कल्चर भी तेजी से बढ़ रहा है। दिखावे और पब्लिसिटी के लिए बनाए गए इस तरह के नकली विवाह समारोह न केवल समाज की गंभीर परंपराओं को हल्का कर रहे हैं, बल्कि धार्मिक मान्यताओं पर भी सीधा असर डाल रहे हैं। भारतीय संस्कृति में विवाह केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि सात जन्मों का पवित्र बंधन और धार्मिक संस्कार है। जब इस पवित्र संबंध को मज़ाक, कंटेंट या मनोरंजन के रूप में पेश किया जाता है, तो यह परंपरा और आस्था दोनों की गरिमा को चुनौती देता है। यही वजह है कि फेक शादी का बढ़ता चलन समाज और धार्मिक दृष्टिकोण से गहन चिंतन का विषय बन गया है।

धार्मिक मान्यताओं पर असर

भारतीय समाज में शादी सिर्फ दो लोगों का नहीं, बल्कि दो परिवारों का पवित्र बंधन माना जाता है। विवाह संस्कार को सोलह संस्कारों में से एक माना गया है और इसे सात जन्मों का संबंध बताया गया है। ऐसे में जब कोई मज़ाक या पब्लिसिटी के लिए फेक शादी करता है, तो यह सीधे-सीधे धार्मिक परंपराओं और संस्कारों की गंभीरता को हल्का कर देता है। लोग विवाह की पवित्रता को मनोरंजन का साधन समझने लगते हैं, जिससे समाज में शादी की वास्तविक गरिमा कमजोर होती है।

समाजिक प्रभाव

फेक शादी का कल्चर युवाओं पर भी गलत प्रभाव डाल सकता है। वे इसे फन एक्टिविटी या कंटेंट क्रिएशन समझकर वास्तविक शादी और रिश्तों की गंभीरता को नजरअंदाज कर सकते हैं। यह प्रवृत्ति परिवार और रिश्तों के प्रति जिम्मेदारी की भावना को भी कमजोर करती है। इसके अलावा धार्मिक दृष्टि से यह परंपरा का मजाक उड़ाने जैसा है, जिससे समाज में असंतोष और विरोध की स्थिति भी पैदा हो सकती है।

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