Dussehra 2025: भारत त्योहारों, परंपराओं और मान्यताओं का देश है. हर त्योहार का एक गहरा संदेश और सीख होती है। ऐसा ही एक त्योहार विजयदशमी या दशहरा है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. इस दिन देश भर में रावण का पुतला जलाया जाता है. दशहरा कल है और रावण दहन होगा। सवाल यह है कि इसे ‘रावण दहन’ क्यों कहा जाता है, ‘पुतला जलाना’ क्यों नहीं? आइए जानते हैं.
रावण सिर्फ़ रामायण का एक किरदार नहीं है. भारतीय परंपरा में उसे अहंकार, लालच, अन्याय और बुराई का प्रतीक माना जाता है. दशहरा में रावण का पुतला जलाने का मतलब सिर्फ़ एक मूर्ति को जलाना नहीं है. रावण दहन का मतलब है बुराई का पूरी तरह नाश. इसलिए इसे ‘दहन’ कहा जाता है, क्योंकि ‘दहन’ का मतलब है आग की पवित्र शक्ति से नकारात्मकता को नष्ट करना.
सिर्फ़ ‘पुतला जलाना’ क्यों नहीं?
प्राचीन काल से आग को पवित्रता और विनाश से जोड़ा गया है. वेदों और पुराणों में आग को पवित्र शक्ति बताया गया है। रावण का पुतला जलाने का मतलब है समाज से बुराई, पाप और नकारात्मकता का पूरी तरह नाश. अगर इसे सिर्फ़ ‘पुतला जलाना’ कहा जाए, तो इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व कम हो जाएगा, क्योंकि यह सिर्फ़ एक बाहरी रस्म जैसा लगेगा.
यह परंपरा क्या है?
यह परंपरा यह संदेश देती है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, उसका नाश निश्चित है. इसलिए सिर्फ़ रावण का ही नहीं, बल्कि उसके भाई कुंभकर्ण और बेटे मेघनाद का पुतला भी जलाया जाता है. प्रतीकात्मक रूप से इसका मतलब है कि हर तरह की बुराई अंत में अच्छाई के सामने टिक नहीं सकती. धार्मिक विद्वानों का मानना है कि ‘रावण दहन’ शब्द का एक गहरा आध्यात्मिक अर्थ है.
यह सिर्फ़ एक त्योहार नहीं, बल्कि आत्म-चिंतन का अवसर है. इस दिन हम अपने अंदर अहंकार, ईर्ष्या, नफरत और लालच जैसी नकारात्मक भावनाओं को खत्म करने का संकल्प लेते हैं, जैसे रावण का नाश हुआ था.
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